आर्यन शर्मा/जयपुर. बायोपिक के इस दौर में अब शिवसेना के फाउंडर बाला साहेब ठाकरे के व्यक्तित्व को ‘ठाकरे’ मूवी से सिल्वरस्क्रीन पर प्रस्तुत किया गया है। ‘मांझी : द माउंटेनमैन’, ‘मंटो’ के चरित्र को पर्दे पर जी चुके नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने फिल्म में टाइटल रोल किया है। उन्होंने ठाकरे के हाव-भाव पकडऩे की अच्छी कोशिश की है, फिर भी ठाकरे का करिश्माई व्यक्तित्व पर्दे पर उतने सशक्त अंदाज में नहीं उतर पाया। कहानी में ठाकरे के कार्टूनिस्ट से पावरफुल पॉलिटिशियन बनने तक के सफर को सिलसिलेवार पिरोया गया है। इसमें दक्षिण भारतीयों पर हमला, बाबरी मस्जिद विध्वंस, हिंदुत्व, भारत-पाकिस्तान क्रिकेट मैच समेत कई विवादास्पद मुद्दों को शामिल किया गया है।
मराठी मानुष के हक के लिए संघर्ष करते ठाकरे
संजय राउत लिखित कहानी दिलचस्प है। कहानी मराठी मानुस के हक के लिए संघर्ष करते ठाकरे के इर्द-गिर्द बुनी गई है, जो उन्हें विवादों की सरगर्मियों के बीच मजबूत राजनीतिक शख्सियत दर्शाती है। स्क्रीनप्ले एंगेजिंग है। संवाद तीखे हैं। अभिजीत पनसे का निर्देशन ठीक है। फिल्म की कहानी को आगे बढ़ाते कोर्ट रूम सीक्वेंस असरदार हैं। नवाज की एक्टिंग तो अच्छी है, लेकिन वह कुछ टाइपकास्ट से लगे हैं। ठाकरे की पत्नी मीनाताई के रोल में अमृता राव की परफॉर्मेंस सराहनीय है। फिल्म में अन्य कोई ऐसा कैरेक्टर नहीं है, जो अधिक समय तक स्क्रीन पर दिखा हो। बैकग्राउंड स्कोर और सिनेमैटोग्राफी आकर्षक हैं।
क्यों देखें : बाल ठाकरे का अपने जीवन में विवादों से ज्यादा नाता रहा था, पर फिल्म में उनकी क्लीन छवि को दिखाया गया है। स्याह पहलुओं को नजरअंदाज किया गया है। ऐसे में बाल ठाकरे के प्रशंसकों को यह फिल्म पसंद आएगी।
रेटिंग : 3 स्टार