‘फॉरेंसिक’ का प्लॉट मलयालम फिल्म से ही है। मलयालम फिल्म में टोविनो थॉमस और ममता मोहनदास लीड रोल में थे। यह मूल संस्करण का दृश्य-दर-दृश्य रीमेक नहीं है। फिल्म के कई सारे एलिमेंट हिन्दी फिल्म में हैं, लेकिन जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है तो इसमें कई नए इनपुट और ट्विस्ट जोड़े गए हैं। फिल्म एक सीरियल किलर की मन:स्थिति, उसके दिमाग के फितूर पर भी बात करती है। विशाल कपूर और अजीत जगताप की पटकथा दिलचस्प है। कैरेक्टर्स पेचीदा हैं। हालांकि, कुछ घटनाक्रम मूर्खतापूर्ण हैं, इन्हें बेहतर तरीके से लिखा जा सकता था। अगर आपने मलयालम फिल्म देखी है, तो उतना मजा नहीं आएगा। फिर भी ‘फॉरेंसिक’ में आने वाले कुछ दिलचस्प मोड़ कौतुहल जगाए रखते हैं। फिल्म की अच्छी बात यह है कि यहां कोई सुपर कॉप अकेले दम पर केस नहीं सुलझा रहा है बल्कि फॉरेंसिक एक्सपर्ट की नजर से भी केस की बारीकियां देखी जा रही हैं। विशाल फुरिया का निर्देशन ठीक है, मगर थ्रिलर के लिहाज से निर्देशन में ‘एक्स-फैक्टर’ मिसिंग है। सिनेमैटोग्राफी उपयुक्त है। गीत-संगीत थ्रिलर की पेस में व्यवधान की तरह है। गानों को जबरदस्ती डाला गया है। फिल्म में और भी कई खामियां हैं। विक्रांत मैसी की परफॉर्मेंस आत्मविश्वास से भरी है। हालांकि, कुछ जगहों पर वह बहुत मज़ेदार होने की कोशिश करते हैं, जिससे खेल थोड़ा बिगड़ जाता है। राधिका आप्टे ने संजीदगी से कॉप की भूमिका अदा की है। प्राची देसाई साइकेट्रिस्ट डॉ. रंजना के किरदार में हैं, वह हैरान करती हैं। रोहित रॉय और विंदू दारा सिंह ने अपने किरदार से न्याय किया है। बहरहाल, फॉरेंसिक दमदार थ्रिलर तो नहीं है, पर टाइमपास के लिहाज देखी जा सकती है। हालांकि थोड़ा बोर भी करती है।
रेटिंग: ★★½