ज्योतिषाचार्य पंडित सोमेश परसाई बताते हैं कि इनमें से कुछ तिथियां शुभ मानी गई हैं, तो कुछ तिथियों को अशुभ भी माना गया है। तिथियों को प्रमुखत: नंदा, भद्रा, जया, रिक्ता और पूर्णा, इन पांच भागों में बांटा गया है। पहली तिथि अर्थात प्रतिपदा को नंदा, द्वितीया तिथि को भद्रा, तृतीया को जया, चतुर्थी को रिक्ता और पंचमी को पूर्णा कहा जाता है। इसके बाद पुनः यही क्रम चालू हो जाता है अर्थात षष्ठी नंदा, सप्तमी भद्रा आदि यह क्रम चलता है।
ज्योतिषाचार्य पंडित नरेंद्र नागर के अनुसार चतुर्थी, नवमी और चतुर्दशी रिक्ता तिथियां कहलाती हैं। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार रिक्ता तिथियों में तांत्रिक कार्य श्रेष्ठ बताए गए है। इनमें भी चतुर्थी का अलग महत्व है। यह तिथि तंत्र-मंत्र सिद्धि के लिए बहुत शुभ मानी गई हैं। हालांकि पौराणिक ग्रंथों के अनुसार रिक्ता तिथियों में गृहस्थों को कोई कार्य नहीं करना चाहिए। इस दिन मूली खाना भी वर्जित किया गया है।