पहले इसके एसएमएस अस्पताल में सालभर में एक-दो मरीज आते थे, लेकिन इस साल रोजाना केस मिल रहे हैं। बीते एक माह की बात करें तो 25 से 30 केस मिल चुके हैं। जिसमें चार केस गंभीर भी पाए गए हैं। उनमें शामिल दो बच्चों के दोनों कान से सुनने के क्षमता जीवनभर के लिए समाप्त हो गई। उनका कॉकलियर इंप्लांट करना पड़ेगा। इसी प्रकार दो अन्य व्यस्क मरीजों की भी एक-एक कान से सुनने की क्षमता शून्य हो गई है। ऐसे में सतर्कता बरतने की जरूरत है।
फ्लू जैसे लक्षण, न करें अनदेखी
चिकित्सकों के अनुसार यह एक संक्रामक बीमारी है। शुरुआत में इसके लक्षण फ्लू जैसे होते हैं और मरीज को बुखार, सिरदर्द के साथ मांसपेशियों में दर्द होने जैसी समस्याएं होती हैं। उसके बाद चेहरे के दोनों ओर पैरोटिड ग्लैंड में सूजन आ जाती है, जिससे व्यक्ति को मुंह खोलने तक में दिक्कत होती है। कुछ केस में पेट दर्द और सूजन की वजह से कानों पर भी असर पड़ता है।
रोजाना मिल रहे 2 से 3 केस, चिंता की बात नहीं
वरिष्ठ शिशुरोग विशेषज्ञ डॉ. अशोक गुप्ता ने बताया कि बच्चों में इस बार मम्प्स के केस ज्यादा मिल रहे हैं। उनके पास रोजाना दो से तीन बच्चे इस बीमारी से ग्रस्त होकर पहुंच रहे हैं। हालांकि चिंता की कोई बात नहीं है क्योंकि समय पर इलाज मिलने पर यह गंभीर असर नहीं करती। अमूमन बच्चे 8 से 10 दिन में ठीक हो जाते हैं, लेकिन कुछ केस में गंभीरता या जटिलता होने पर ज्यादा समय लग जाता है। परिजन बच्चों के किसी भी प्रकार के लक्षणों की अनदेखी न करें। बिना डॉक्टर परामर्श उन्हें कोई भी न दवा दें।
टीका है उपलब्ध
चिकित्सको का कहना है कि बच्चों को इस बीमारी से बचाने के लिए एमएमआर (मीजल्स, मम्प्स, रुबेला) वैक्सीन लगाई जाती है, सरकार के वैक्सीनेशन शेड्यूल में यह शामिल नहीं है। कई लोग अपने स्तर पर लगवाते हैं। बीमारी का पता चलते ही संक्रमित बच्चे को तुरंत उपचार की जरूरत होती है। एंटीबायोटिक दवाएं देकर उसका इलाज किया जाता है। अगर इस बीमारी का इलाज समय पर न किया जाए तो बच्चे की सुनने की क्षमता जा सकती है। पेट संबंधी भी दिक्कत हो सकती है।
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बचाव के उपाय
– बच्चों को एमएमआर का टीका लगवाएं।
– मास्क लगाएं।
– संक्रमित व्यक्ति को आइसोलेट करें। उसके बर्तन, पानी, रूमाल आदि शेयर करने से बचें।
– साबुन से बार-बार हाथ धोएं।
– बच्चों को भीड़-भाड़ वाले स्थानों पर न भेजें।