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सीएम के थे कई दावेदार
वर्ष 1998 में अशोक गहलोत 47 वर्ष की आयु में राजस्थान के मुख्यमंत्री बने थे। कांग्रेस को उस समय डेढ़ सौ से ज्यादा सीटें मिली थी और कांग्रेस के कई बड़े नेता मुख्यमंत्री की दौड़ में थे। गहलोत के साथ कई वरिष्ठ नेता परसराम मदेरणा, नवलकिशोर शर्मा, शिवचरण माथुर भी विधायक बने थे। तब मदेरणा के साथ नवलकिशोर शर्मा भी मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में शामिल थे। जब गहलोत मुख्यमंत्री बने तो इनकी वरिष्ठता को देखते हुए इन्हें मंत्री नहीं बनाया गया, लेकिन राज में भागीदारी दी गई थी।
भाजपा सरकार में यह प्रयोग
भाजपा में पहली बार के विधायक भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री बनाया है। इसी तरह दिया कुमारी और प्रेमचंद बैरवा को डिप्टी सीएम बनाया है। दिया और बैरवा दूसरी बार के विधायक बने है।
मदेरणा को बनाया था स्पीकर
1998 में जब कांग्रेस सत्ता में आई थी तो परसराम मदेरणा मुख्यमंत्री पद के दावेदार थे, लेकिन वे मुख्यमंत्री नहीं बन पाए और पार्टी ने उन्हें संवैधानिक पद देकर विधानसभा स्पीकर बनाया। मदेरणा का यह अंतिम चुनाव रहा।
शर्मा को इस कमेटी की दी थी जिम्मेदारी
पूर्व केंद्रीय मंत्री नवल किशोर शर्मा उस समय मुख्यमंत्री पद के दावेदार थे। वे जयपुर ग्रामीण सीट से विधायक बने थे। बाद में जब गहलोत मुख्यमंत्री बने थे तब उन्हें स्वतंत्रता सेनानियों से जुडी कमेटी का चेयरमैन बनाया गया और कैबिनेट मंत्री का दर्जा भी मिला था।
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माथुर बने थे प्रशासनिक आयोग चेयरमैन
शिवचरण माथुर दो बार राजस्थान के मुख्यमंत्री रह चुके थे। 1998 में वे भी मांडलगढ़ सीट से विधायक बने। माथुर को प्रशासनिक सुधार आयोग के चेयरमैन की जिम्मेदारी दी। उन्हें भी कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया गया था।
देवनानी को अब विधानसभा अध्यक्ष
इसी तरह भाजपा ने भी विधायक वासुदेव देवनानी की वरिष्ठता को देखते हुए उन्हें संवैधानिक पद विधानसभा स्पीकर के लिए नामित कर इसकी शुरुआत कर दी है। वे लगातार पांचवी बार विधायक बने हैं।