इस अभियान का उद्देश्य इनहेलेशन थेरेपी के कलंक को मिटाना है और मुख्य मुद्दों और थेरेपी से मिथकों के विषय में बताते हुए, इसे अधिक सामाजिक स्वीकृति दिलाना है। इससे अभिभावकों और फिजिशियन के बीच अधिक संवाद करने में मदद मिलेगी और मुख्य रूप से यह बताया जाएगा कि इनहेलर्स बच्चों के लिए उपयुक्त है और सभी स्तरों की गंभीरता के लिए इनहेलर्स एडिक्टिव नहीं हैं औेर ओरल सोलूशन्स की तुलना में इससे अच्छे परिणाम मिलते हैं।
अस्थमा रोग विशेषज्ञ डॉ. वीरेन्द्र सिंह ने बताया कि अस्थमा एक लंबी अवधि की बीमारी है, जिसकी पहचान आम तौर पर वायुमार्ग में जलन और वायुमार्ग के संकरा हो जाने से की जाती है, यह समय के साथ घटबढ़ सकती है। ऐसा अनुमान है कि जयपुर के स्थानीय डॉक्टर्स रोजाना अस्थमा की बीमारियों के 65 मरीजों को देखते हैं। पीडियाट्रिक अस्थमा सेगमेंट में भी वर्ष दर वर्ष उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है, डॉक्टरों का मानना है कि वह हर महीने अनुमानत: 30 से 35 नए मामले अस्थमा से पीडि़त बच्चों के देखते हैं। अभी तक 2019 में औसतन जयपुर में पिछले वर्ष की तुलना में 45 प्रतिशत अस्थमा के मरीजों की संख्या बढ़ी है, जयपुर की लगभग एक तिहाई आबादी किसी समय तक अस्थमा के रोग का शिकार हो सकती है जिसमें अधिकतर 20 वर्ष से कम आयु के बच्चे होंगे। फिलहाल पिछले कुछ वर्षों में इनहेलेशन थेरेपी का इस्तेमाल करने वाले मरीजों की संख्या में वृद्धि हुई है, अनुमानत: 65 प्रतिशत अस्थमा के मरीज इनहेलर का इस्तेमाल बंद कर देते हैं।
जयपुर में अस्थमा के प्रचलन का सबसे बड़ा कारण वायु प्रदुषण के अलावा बढ़े हुए एयर पारटिकुलेट तत्व, पॉलेन, स्मोकिंग, खाने की आदतें, पोषक तत्वों की कमी, आनुवंशिकी प्रवृत्ति और बड़े पैमाने पर अभिभावकों की लापरवाही है। फेफड़े की बीमारियों का प्रतिशत और संख्या, विशेषकर जयपुर में काफी बढ़ी है। अस्थमा के तेजी से बढऩे के बावजूद, भारत में इसके नियंत्रण की प्रक्रिया सभी बीमारियों से खराब है।