स्पोट्र्स ड्रेस के बजाय पोशाक
अनुप्रिया ने बताया कि वह 2007 में पढ़ाई के लिए यूके गई थीं। फिलहाल वह यूके की नेशनल हेल्थ सर्विस में साइकोलॉजिकल थेरेपिस्ट हैं। उनके मन में राजस्थान और यहां की संस्कृति बसती है।
लंदन मैराथन में हिस्सा लेने के लिए वे चार वर्ष से मेहनत कर रहीं है। हाल ही हुई मैराथन में उन्होंने महंगी स्पोट्र्स ड्रेसेस की बजाय राजस्थानी पोशाक को चुना। अनुप्रिया कहती हैं कि अपने इस काम से वह संस्कृति को प्रमोट करने के साथ-साथ उन महिलाओं के प्रति भी सम्मान व्यक्त करना चाहती हैं, जो दिन रात इसी पोशाक में काम करती हैं। उन्होंने कहा कि यह पोशाक बहुत ही आरामदायक है और मैराथन के लिए किसी प्रकार के दूसरे खर्चें की जरूरत नहीं है।
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अनुप्रिया ने बताया कि जब वह पचास हजार लोगों के बीच अपनी पारम्परिक पोशाक पहनकर दौड़ी, तो लोगों ने उत्साह से उनके साथ फोटो खिचवाईं व राजस्थानी संस्कृति के बारे में भी जाना। ऐसे में वहां पर एक अफ्रीकी ग्रुप ने उन्हें देखकर अगले वर्ष अपनी पारम्परिक ड्रेस में आने का निर्णय लिया। अनुप्रिया ने बताया कि कॅरियर के लिए कर्मभूमि दूसरी चुननी पड़ सकती हैं, लेकिन मातृभूमि के प्रति दायित्व को नहीं भूलना चाहिए। अपनी जड़ों से जुड़े रहना बहुत जरूरी है।