शालिनी अग्रवाल
केदारनाथ. भोलेनाथ की नगरी केदारनाथ (Kedarnath Dham) को श्रद्धा और आस्था की नगरी भी कहा जाता है। हर साल लाखों श्रद्धालु यहां बाबा का आशीर्वाद लेने आते हैं। लेकिन आज से ठीक दस साल पहले भोलेनाथ की यही धार्मिक नगरी प्रलय का ऐसा (kedarnath flood story) मंजर लेकर आई थी, जिसे देखकर और सुनकर सभी हैरान थे। उस प्रलय में हजारों लोगों की मौत हुई थी। सैकड़ों लोग लापता हो गए थे, उनमें कुछ का पता आज तक नहीं चला। दस साल में यहां क्या बदला और प्रलय के उस मंजर से हमने क्या सबक लिया। इन्हीं सवालों का जवाब तलाशने मैं बाबा की नगरी पहुंची। महसूस किया कि आस्था के साथ बढ़ते पर्यटन के कदमताल ने प्रकृति के साथ प्रशासन को भी बेहाल कर दिया है। प्रलय (kedarnath flood story) के बाद भी आस्था में कोई कमी नहीं आई और
2014 के मुकाबले श्रद्धालुओं की संख्या 70 गुना तक पहुंच गई है।
ऐसे बढ़ते गए श्रद्धालु 2013……………… 3 32 240 (16 जून से पहले)
2014…………………………… 27,463
2015…………………………… 1,54,430
2016…………………………… 3,०9,746
2017…………………………… 4,71,235
2018…………………………… 7,32,241
2019…………………………… 10,०००,21
2020…………………………… 1,30,551
2021…………………………. 2,42,712
2022……………………….. 15,59,778
2023 ……………………….. अब तक 8,०००,०० पार
(श्री बद्रीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के अनुसार) -बदलता मौसम, इंतजाम नाकाफी
यहां का मौसम पूरे रास्ते हर पल बदलता रहता है। हमें तो रेनकोट में ही पूरा सफर तय करना पड़ा। भीड़, घोड़े और खच्चरों की गंदगी और फिसलन के बीच जैसे-तैसे पहुंच जाते हैं तो दर्शनों के लिए घंटों कतार में लगना होता है। आप रात में मंदिर के पास रुकने का मन बनाते हैं तो फिर भारी पैसे भी खर्च करने होते हैं। टैंट में रहना है। महिलाएं और बच्चे साथ हों तो परेशानी कई गुना बढ़ जाती है। यही हाल गौरीकुंड का भी हैं, जहां आपको 2000 रुपए के कमरे के लिए 10 हजार रुपए तक खर्च पड़ सकते हैं।
– रजिस्ट्रेशन के मायने नहीं… Registration of kedarnath yatra जयपुर से जब हम रजिस्ट्रेशन करवाकर सोनप्रयाग पहुंचे तो लगा कि रास्ते में चैकिंग रहेगी, लेकिन वहां जाकर देखा कि कई बार लोग रजिस्ट्रेशन करवाकर भी नहीं आते और जो कराकर जाते हैं, उनकी ठीक चैकिंग नहीं हो रही है, यात्रियों के हुजूम के आगे ऐसा संभव भी नहीं लगता। एक श्रद्धालु ने बताया कि उन्होंने किसी और के रजिस्ट्रेशन पर दर्शन किए।
– घोड़े वालों की मनमानी पैदल रास्ते में घोड़े, खच्चर और पिटठू वालों के साथ यात्रा करनी होती है। पूरे रास्ते में कई बार एक ही घोड़े वाला तीन-चार घोड़ों को लेकर चलते मिलते हैं। वह एक को पकड़ता तो बाकी भगदड़ में खुद घायल हो जाते हैं या यात्री चोटिल हो जाते हैं। हाल ही यात्रियों से मारपीट करने का वीडियो भी वायरल हो रहा है।
-सबक जो नहीं लिए वर्ष 2013 के बाद हुए अध्ययन का निचोड़ था कि आपदा प्रकृति (2013 Kedarnath flood disaster) के साथ छेड़छाड़ का नतीजा है। आज प्रतिदिन वहां करीब 25 हजार श्रद्धालु पहुंच रहे हैं। इनके अलावा प्रशासन के लोग, दुकानदार, तीर्थ पुरोहित और सुरक्षाकर्मी भी मौजूद हैं। इस तरह करीब 40 हजार लोग प्रतिदिन वहां रह रहे हैं। पूरे साल भारी-भरकम मशीनें वहां चल रही हैं। इसी सीजन में केदारनाथ में तीन बार ग्लेशियर टूट चुके हैं। मतलब त्रासदी के बाद भी हमने कोई सबक नहीं लिया है।
-सच जानते केवल बाबा केदार सरकारी आंकड़ों के अनुसार आपदा (2013 Kedarnath flood disaster) में 5000 से ज्यादा मौतें हुई थीं, वहीं 13 हजार लोग फंस गए थे। आपदा के तुरंत बाद 19 जून को केदारनाथ पहुंचे प्रत्यक्षदर्शी कुलदीप राणा बताते हैं कि आपदा में मरने वालों की संख्या तकरीबन 25 हजार थी। साधु-संतों का कोई आंकड़ा नहीं था। वहीं, मिनी नेपाल कहे जाने वाले गौरीकुंड में मारे गए नेपाली नागरिकों की भी कोई गिनती नहीं हुई।
-आज भी याद है वो मंजर ‘15 जून,2013 की शाम पर जब गौरीकुंड पहुंचे तो मौसम खराब हो चुका था। सुबह उठे तो चारों ओर कोहरा था, सामने नदी बुरी तरह से उफन रही थी। सारे होटल, घोड़े, खच्चर बह चुके थे। चार दिन-चार रात वहीं फंसे रहे। भाग्यशाली रहे कि वहां से किसी तरह पूरा परिवार सुरक्षित लौट आया।’ -कन्हैयालाल (प्रलय के प्रत्यक्षदर्शी)
‘मेरे माता-पिता 2013 में केदारनाथ गए थे और वहां प्रलय (2013 Kedarnath flood disaster) आ गई और वे कभी नहीं लौटे। उनके साथ सैकड़ों लोग लापता हो गए और बहुत लोगों की मौत हो गई थी। यह दर्द कभी नहीं भुला पाएंगे। प्रकृति के साथ खिलवाड़ बंद होना चाहिए।’ -संदीप, शाहपुरा