रिपोर्ट में कई बार घबराहट और गलती शब्द का प्रयोग
मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश जस्टिस वी.के. अग्रवाल की रिपोर्ट में कहा गया है कि जांच करने के बाद उन्होंने पाया कि सुरक्षाकर्मियों ने घबराहट में गोलियां चलाई होंगी। रिपोर्ट में इस घटना को तीन से अधिक बार गलती बताते हुए जस्टिस अग्रवाल ने कहा कि मारे गए आदिवासी निहत्थे थे और वहां 44 राउंड चली गोलियों में ग्रामीण मारे गए।
सीबीआई जांच भी जारी
गौरतलब है कि मई 2019 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद इस मामले की सीबीआई भी अलग जांच कर रही है। लेकिन झीरम मामले में कांग्रेस सरकार के फैसले के बाद टकराव जैसी स्थिति बनी हुई है। यही वजह है कि जो रिपोर्ट छह महीने में सुप्रीम कोर्ट में सौंपनी थी, वह आगे ही नहीं बढ़ी है। याचिकाकर्ता डिग्री प्रसाद चौहान ने भी कहा कि सरकार और केंद्रीय एजेंसियों को चाहिए कि वह जांच में सहयोग करें।
पर्याप्त सुरक्षा गैजेट होते तो टल सकती थी घटना
रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर सुरक्षाबलों को बेहतर खुफिया जानकारी होती और वे सावधान रहते तो घटना को टाला जा सकता था। सुरक्षाबल पर्याप्त उपकरणों से लैस नहीं थे। यही वजह रही कि आत्मरक्षा और घबराहट में उन्होंने गोलीबारी की। क्योंकि घटनास्थल पर सभी आदिवासी थे। किसी के पास हथियार नहीं था। इसलिए क्रॉस फायरिंग का सवाल ही नहीं उठता। जिन पुलिस जवानों की मौत हुई, वह भी आपसी गोलीबारी की वजह थी।
सारकेगुड़ा मुठभेड़ की जांच भी इसी आयोग ने की थी
गौरतलब है कि इससे पहले सारकेगुड़ा मुठभेड़ की जांच भी इसी आयोग ने की थी। इसमें मुठभेड़ को फर्जी बताया गया था। सारकेगुडा में भी लोग जून 2012 में बीज पांडूम समारोह के लिए एकत्र हुए थे। वहां 17 लोगों की मौत हुई थी। जस्टिस अग्रवाल की सारकेगुडा रिपोर्ट, जिसमें सुरक्षाकर्मियों को भी आरोपित किया गया था, अभी भी राज्य के कानून विभाग के पास लंबित है।
बयान में एकरूपता बनी रिपोर्ट का मुख्य आधार
इस पूरी जांच रिपोर्ट का मुख्य आधार वहां के ग्रामीणों का बयान है। रिपोर्ट में घटना के बाद ग्रामीणों द्वारा कही गई अधिकतर बातें एक-दूसरे से मेल खाती हैं। इसमें फायरिंग के वक्त ग्रामीणों द्वारा गोलीबारी बंद करने की बात हो या फिर उनके घटना के वक्त छिपने की बात। सभी में एकरूपता इस रिपोर्ट को मजबूत बनाती है।
रिपोर्ट की खास बातें
– आयोग ने सुरक्षाबल के काम में कई खामियां पाईं।
– दो देसी मोर्टार लॉन्चर की जब्ती को संदिग्ध और अविश्वसनीय बताया है।
– रिपोर्ट में कहा गया कि क्षेत्र से कोई भी सामान फॉरेंसिक लैब में नहीं भेजा गया।
– नक्सल ऑपरेशन के पीछे कोई मजबूत खुफिया जानकारी नहीं थी।
– एकत्रित हुए लोगों में से किसी के पास हथियार नहीं थे और न ही वे नक्सली संगठन के सदस्य थे।
– भविष्य में ऐसी घटनाओं से बचने के लिए ड्रोन और मानव रहित गैजेट्स के उपयोग करने का सुझाव दिया गया।