ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को रखा जाने वाला वट सावित्री व्रत अंचल के गांवों में सुहागिन महिलाओं द्वारा धूमधाम से मनाया गया। इस दौरान सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए व्रत रखी और उनकी लंबी उम्र के लिए कामना की। साथ ही वट वृक्ष की विधि-विधान से पूजा और परिक्रमा कर पति के जीवन में आने वाली समस्याओं को दूर करने के लिए प्रार्थना की।
पूजा करने के बाद महिलाऐं वट वक्ष के नीचे बैठकर सावित्री सत्यवान की कथा सुनी। वट वृक्ष के नीचे बैठकर ही सावित्री ने अपने पति व्रत से पति सत्यवान को दोबारा जीवित कर लिया था।
वट वृक्ष की पूजा से घर में सुख शांति धनलक्ष्मी का भी वास होता है, व वट वृक्ष रोग नाशक भी है। हालांकि इस बार वट सावित्री व्रत को लेकर महिलाओं में असमंजस की स्थिति रही। कहीं पर 29 को तो कहीं 30 तारीख को वट सावित्री व्रत मनाने की चर्चा चलती रही। मंदिरों में पूजा-अर्चना करने के साथ ही वट वृक्ष की विधि-विधान के साथ पूजा की। पति की दीर्घायु के लिए रखा जाने वाला वट सावित्री व्रत सोमवार को जिले भर में हर्षोल्लास मनाया गया। शाम को व्रत के समापन के बाद अन्न ग्रहण किया।
भूनेश्वरी यादव ने बताया कि इस दिन माता सावित्री ने अपने दृढ़ संकल्प और श्रद्धा से यमराज द्वारा अपने मृत पति सत्यवान के प्राण वापस पाए। इसलिए महिलाओं के लिए ये व्रत बेहद ही फलदायी माना जाता है। इस दिन सुहागन महिलाएं पूरा श्रृंगार कर बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं। वट वृक्ष की जड़ में भगवान ब्रह्मा, तने में भगवान विष्णु व डालियों, पत्तियों में भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है। महिलाएं इस दिन यम देवता की पूजा करती हैं।
पंडित सुजीत वैदिक ने बताया कि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस व्रत को सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और संतान प्राप्ति के लिए रखती हैं। मान्यता है कि इस व्रत को रखने से अखंड सौभाग्य व सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। ज्योतिषियों के अनुसार इस दिन मां लक्ष्मी व भगवान विष्णु की पूजा का भी विधान है। साथ ही स्नान, दान, पुण्य और जप तप का भी इस दिन का विशेष महत्व है।