जिले के बस्तर और बकावंड ब्लॉक में फ्लोराइड की मात्रा मानक से तीन से चार गुना अधिक है। वहीं बस्तर ब्लॉक के करीब 30 से अधिक गांवों के लोगों को फ्लोराइड व आयरन युक्त पानी से निजात दिलाने कोसारटेडा जल प्रदाय योजना के तहत करीब 49 करोड़ 76 लाख रुपए खर्च किया गया है। इसमें सिर्फ वाटर ट्रीटमेंट प्लांट पर एक करोड़ से अधिक खर्च किया गया है। इस योजना के तहत मुख्य टंकी से सभी गांवों तक पानी पहुंचाने के लिए करीब 230 किमी. से अधिक लंबी पाइप लाइन भी बिछाई गई थी।
2015 में इस प्रोजेक्ट की शुरुआत की गई, जिसे 2017 में पूरा किया गया। बस्तर ब्लॉक में शुद्ध पेयजल के लिए करोड़ों रुपए खर्च के बावजूद यहां पर हर साल फ्लोराइड पीडि़तों की संख्या बढ़ती जा रही है। बकावंड ब्लॉक में 7.4 पीपीएम है फ्लोराइड की मात्रा : बस्तर जिले में बकावंड, बस्तर, बास्तानार और दरभा ब्लॉक के भूजल में फ्लोराइड की मात्रा मानक से कहीं ज्यादा है। मिली जानकारी के अनुसार इसमें बकावंड ब्लॉक के मेटावाड़ा, जैबेल और डिमरापाल ग्रामीण क्षेत्र में करीब 7.4 मिलीग्राम प्रति लीटर फ्लोराइड है। वहीं दरभा ब्लॉक के कोडरीछापर व हडमापारा क्षेत्र में 2.4 और बिसपुर पंचायत के धुरवापरा, छिंदावाडा पंचायत के कोयेनापारा में 1.9 मिलीग्राम प्रति लीटर फ्लोराइड की मात्रा पाई जाती है। जो ग्रामीणों के लिए स्लो पॉइजन है। बना हुआ है।
जिन गांवों में बिछाई पाइप लाइन वह आज भी फ्लोराइड प्रभावित
कोसारटेडा जल प्रदाय योजना के तहत बस्तर ब्लॉक के जिन गांवों में पाइप लाइन बिछाया गया है वह आज भी फ्लोराइड प्रभावित है। इसमें बाकेल, खडका, जामगांव, बेसोली, सोनारपाल, सिवनी, विश्रामपुरी, तारागांव, मंजुला, करंदोला, बोडऩपाल, तुरपुरा, पल्लीभाठा, केशरपाल, नाहरनी, मुरकुची, कुमली, पिपलावंड व सितलावंड में पाइप लाइन बिछाया गया है। इन ग्राम पंचायतों के पारा व बसाहटों में आज भी फ्लोराइड के कहर से ग्रामीण पीडि़त हैं।
निर्धारित मात्रा में फ्लोराइड शरीर के लिए जरूरी भी
विशेषज्ञो की माने तो पानी में फ्लोराइड की मात्रा 0.5 पीपीएम (मिलीग्राम प्रति लीटर) होनी चाहिए। इससे कम या अधिक होने पर शरीर को नुकसान होता है। वहीं एक लीटर पानी में 0.6 मिलीग्राम फ्लोराइड दांतों और हड्डियों की मजबूती के लिए आवश्यक माना जाता है। जबकि बस्तर जिले के भानपुरी, बस्तर, बकावंड और लोहांडीगुडा ब्लॉक के कई ग्रामीण क्षेत्रों के पानी में फ्लोराइड की मात्रा मानक से अधिक है। इससे ग्रामीण फ्लोरोसिस बीमारियों से जूझ रहे हैं। शुरुआती चरण में दांत पीले पडऩे लगते है। फिर काले हो जाते है। इतना ही नहीं फ्लोराइड शरीर की हड्डियों को भी गला देता है। यह बस्तर के लोगों के लिए अभिशाप बनता जा रहा है।