ताकि कोई अपने आप को मजबूर न समझे गुरूवारी ने पत्रिका से कहा कि उनका सपना है कि वे स्पेशल एजुकेटर बने। यहां वे सामान्य लोगों के बीच पढ़ाई करके जब स्पेशल एजुकेटर बन जाएंगी तो दिव्यांगों के लिए विशेष तौर पर क्लास लेंगी। उनका मानना है कि दिव्यांग होना कोई अभिशाप नहीं है। इस दौरान वे दिव्यांगों को कैसे पढ़ाया जाए इसके लिए भी तैयारी करेंगी।
अब तक की पढ़ाई सामान्य कॉलेज से पूरी की गुरुवारी की खासियत है कि उन्होंने कभी अपने आप को असहाय नहीं माना। जिंदगी या भगवान को दोष देने के बजाए अपने को बेहतर बनाने की दिशा में प्रयास किया। इसी का नतीजा है कि वे सफलता की ओर अग्रसर हैं। चौकाने वाली बात यह है कि गुरुवारी की अब तक पूरी पढ़ाई सामान्य स्कूल व कॉलेज में हुई है। यानी उन्होंने ब्रेल लिपि में पढ़ाई नहीं की है। स्कूली शिक्षा जगदलपुर में करने के बाद वे सरकारी दूधाधारी बजरंग गर्ल्स पोस्ट-ग्रेजुएट कॉलेज रायपुर में आगे की पढाई की। अब ग्रेजुएट होने के बाद वे स्पेशल एजुकेटर बनने के लिए लखनऊ रवाना हो रही हैं।
तीन भाई-बहन…आंखों से नहीं देख सकते, लेकिन वाद्ययंत्र बजाने में हैं माहिर ऐसा नहीं है कि कनौजी परिवार में सिर्फ गुरुवारी को ही आंखों से नहीं दिखता। बल्कि बस्तर के गारेंगा गांव के किसान अग्रुराम और हेमंती बाई के परिवार के तीनों बच्चों की यही स्थिति है। भीमाधर, गुरुवारी और सुखधर तीनों को ही आंखो से नहीं दिखता। लेकिन इनके हौसलों के सामने यह दिव्यांगता ने भी घुटने टेक दिए हैं। आज तीनों वाद्ययंत्रों में ढोलक, केसियो और बांसुरी शानदार बजाते हैं। भीमधर सरकारी नौकरी में हैं। गुरुवारी स्पेशल एजुकेटर बनने लखनऊ जा रहीं है। वहीं सुखधर बीए सेकेंड इयर में हैं। सुखधर और भीमधर दोनों ही क्रिकेट भी खेलते हैं और मुबई तक अपनी प्रतिभा दिखा चुके हैं।