बालमीक पाण्डेय @ जबलपुर। हमारा देश धर्म, अध्यात्म और मान्यताओं का देश है। देश में कई समाज, जाति, संप्रदाय के लोग निवास करते हैं। यहां पर भगवान, देवी-देवाताओं के कई मंदिर हैं। इन मंदिरों व समाज से जुड़ी अनगिनत मान्यताएं भी हैं, लेकिन कुछ मान्यताएं ऐसी हैं जो वाकई हैरान करने वाली हैं। एक ऐसी ही मान्यता है जो धर्म से जुड़ी हुई है, जिसे जानकार न सिर्फ आपको अचरज होगा, बल्कि एक सीख भी मिलेगी। हम बात कर रहे हैं कटनी जिला अंतर्गत बरही क्षेत्र के कई गांव में बसने वाले ब्राम्हण समाज के लोगों में चली आ रही मान्यता की। यहां पर एक ऐसी मान्यता चली आ रही है जो सत्य घटना से जुड़ी हुई है। यहां पर दूध-दही जूठा एकसाथ रखने पर कुल देवता नाराज हो जाते हैं और एकाएक नागों का झुंड आ जाता है, जो फिर क्षमा प्रार्थना और पूजा के बाद ही जाते हैं। कुल देवता की पुजाई से जुड़ी ये मान्याता काफी रोचक और अजीब भी है। तो चलिए आपको भी ऐसे ही एक मान्यता से रू-ब-रू कराते हैं।
दुबे परिवार में है मान्यता
जानकारी अनुसार कटनी जिला मुख्यालय से लगभग 45 किलोमीटर दूर बसे हैं आधा दर्जन से अधिक गांव। बरही क्षेत्र के बम्हनगवां, कुंदरेही, सेमरिया, बनगवां, भदनपुर सहित अन्य गांव हैं। इन गांवों में एक सैकड़ा से अधिक दुबे परिवार निवास करता है। यह मान्यता दुबे परिवार के कुल देवता की पुजाई से जुड़ी हुई है। जो सदियों से चली आ रही है।
शुक्ल सप्तमी को होती है पूजा
आप सभी जानते हैं की हिंदू धर्म में साल में एक बार कुल देवता की पुजाई होती है। बम्हनगवां निवासी पजन दुबे ने बताया कि उनके परिवार के कुल देवता भगवान शंकर हैं। भगवान शिव की उपासना के महापर्व सावन के महीने में पुजाई होती है। कुल देवता की पुजाई श्रावण शुक्ला सप्तमी को होती है। परिवार के लोग दूर-दराज से घर पहुंचते हैं और एक साथ कुलदेवता की पूजा करते हैं।
यह है मान्यता
पंकज दुबे ने बताया कि नागपंचमी के बाद से कुल देवता के पूजन की तैयारी शुरु हो जाती है। शुक्ला सप्तमी को परिवार और गोत्र के लोग एक साथ मिलकर पुजाई करते हैं। नागपंचमी से लेकर पुजाई के दिन तक गौ-रस को बड़े ही सफाई से रखा जाता है। अनुज दुबे ने बताया कि दूध और दही के पात्र एक साथ जोड़कर नहीं रखे जाते। खास बात तो यह है कि यदि इनमें से कोई भी एक पात्र जूठा है तो फिर इससे कुल देवता नाराज हो जाते हैं।
जीवंत हो चुकी है घटना
पजन दुबे की मानें तो कुल देवता की पुजाई से जुड़ी यह मान्यता कई बार जीवंत हो चुकी है। यदि धोखे से भी गलती हो जाती है तो एकाएक नागों को झुंड घरों में या फिर आसपास मंडराने लगते हैं। गलती का भान होने पर क्षमा प्रार्थना की जाती है, और पुजाई का संकल्प लिया जाता है। इसके बाद वहां से नागों का झुंड गायब होता है।
रखते हैं विशेष सावधानी
प्रभाकर दुबे ने बताया कि सावन के महीने में इस नियम का विशेष ख्याल समाज के लोग रखते हैं। बड़ी ही सावधानी और सफाई से गौ-रस को संभालते हैं। बच्चों को भी इन दिनों में नियमों का पालन करने का पाठ पढ़ाया जाता है। कुल-समाज की रक्षा और तरक्की के लिए महीनेभर उपासना का यह क्रम चलता है।
यह भी है खास
दुबे परिवार के लिए भले ही यह एक मान्यता है, लेकिन इससे भी समाज को एक बड़ा ही सुंदर संदेश मिल रहा है। आज की आधुनिकता और पाश्चात्य सभ्यता के हावी होने में यह देखा जा रहा है कि भोजन, गौ-रस या अन्य भी कोई खाद्य सामग्री के जूठा होने से परहेज नहीं किया जाता। एक साथ उसे जूठा कर दिया जाता है। लेकिन हमें इस मान्यता से यह संदेश भी मिलता है कि गौ-रस, खाद्य सामग्री आदि को जूठा नहीं करना चाहिए, ताकि जरुरत पडऩे पर उसे किसी को दिया जा सके।
खास है तिथि
शुक्ला सप्तमी तिथि बड़ी ही खास है। श्रावण महीने में पडऩे के साथ ही इसी दिन श्री रामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास का जन्म दिवस माना जाता है। 1568 में राजापुर में श्रावण शुक्ल 7 को इनका जन्म हुआ था। जिन्होंने प्रभु श्रीराम की सेवा में लीन होकर रामचरित मानस की रचना की। तुलसीदास जी ने दोहावली, कवित्तरामायण, गीतावली, रामचरित मानस, रामलला नहछू, पार्वतीमंगल, जानकी मंगल, बरवै रामायण, रामाज्ञा, विन पत्रिका, वैराग्य संदीपनी, कृष्ण गीतावली। इसके अतिरिक्त रामसतसई, संकट मोचन, हनुमान बाहुक, रामनाम मणि, कोष मञ्जूषा, रामशलाका, हनुमान चालीसा आदि आपके ग्रंथ भी प्रसिद्ध हैं।
Hindi News / Jabalpur / यहां दूध-दही जूठा करने पर आ जाता है नागों का झुंड, जानिए रोचक रहस्य