जबलपुर। आजादी से पहले तकनीकी का विकास इतना अधिक नही हुआ था। उस पर आंदोलन की आग में कूद पड़े क्रांतिकारियों को चोट लगना घायल होना आम बात थी। ऐसे में इन लोगों का इलाज ऐसी चीजों से किया जाता था जो आज की मेडिशंस पर भारी पड़ सकती हैं।
गुलाम भारत में वतन के दीवाने क्रांतिकारियों का इलाज पत्ते-जड़ से किया जाता था। देसी इलाज में पत्तों और जड़ को तेल मिलाकर लेप तैयार किया जाता था, जो क्रांतिकारियों के घावों पर मलहम का काम करता था। क्रांतिकारी इन पत्तीनुमा औषधियों का इस्तेमाल इलाज में करते थे। वे खासतौर पर ताड़ की मिश्री खोजते थे।
कमानिया, कोतवाली में आजादी के पूर्व से बाजार है। इस बाजार में आज भी पुरान दुकानें एेसी हैं, जो इतिहास दोहराती हैं। इन दुकानों में देसी औषधि और तंबाखू है। इन दुकानदारों ने अपने पूर्वजों द्वारा दिए जाने वाले ट्रीटमेंट और देसी उपचार के बारे में बताया कि क्रांतिकारी से लेकर अंग्रेज तक देसी नुस्खों से न केवल इलाज लेते थे।
ये देते थे दवा
नीलेश पंसारी ने बताया कि आजादी के लिए जंग लडऩे वाले क्रांतिकारियों को उनके दादा बाबूलाल पंसारी दवा देते थे। पूर्वजों के मुताबिक अंग्रेज भी आयुर्वेद के दीवाने थे। उस दौर में अंग्रेज आकर सबसे ज्यादा ताड़ की मिश्री मांगते थे। कोतवाली में बस स्टैंड होने की वजह से उनकी दुकान सबसे नजदीक थी, जहां पर क्रांतिकारियों से लेकर अंग्रेज दवा लेने आते थे।
प्राचीन नुस्खे
आमा हल्दी, चोट सज्जी- चोट में
हठजुड़ी- हड्डी टूटने पर
फिटकरी,अजवाइन – चोट में
रीठा,शीकाकाई, भृंगराज- देसी शैंपू
काली मिट्टी,मुल्तानी मिट्टी- नहाने में
हिंगवास्टक चूर्ण- गैस विकार में
पंचशकाला- पेट साफ करने में
शीतोपलाश चूर्ण- सर्दी-खांसी में
Hindi News / Jabalpur / पत्ते-जड़ और तेल का मलहम, 1947 में ऐसे होता था ‘क्रांतिकारियों’ का इलाज