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जबलपुर

कटनी के इस नगर में रुके थे सम्राट अशोक, कुंड-शिलालेख में समाएं हैं अनूठे रहस्य

तीन कुंडों का है विशेष महत्व, 232 ईपू के हैं शिलालेख, सम्राट को प्रिय था यह स्थान

जबलपुरJan 06, 2017 / 03:24 pm

Premshankar Tiwari

roopnath-katni-bahoriband

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बालमीक पाण्डेय @ कटनी/जबलपुर। 304 से 232 ईसा पूर्व तक विश्वप्रसिद्ध एवं शक्तिशाली भारतीय मौर्य राजवंश के महान सम्राट देवानांप्रिय अशोक मौर्य (सम्राट अशोक) कटनी जिले के छोटे से नगर बहोरीबंद के समीप स्थित रूपनाथ में रुके थे। 272 से 232 ईसापूर्व तक अशोक ने अखंड भारत पर राज्य किया। रूपनाथ धाम में उनके रहने व ठहरने सहित देशहित के लिए कई उपयोगी शिलालेख व उनके माध्यम से कराए गए निर्माण यहां रहने के प्रमाण दे रहे हैं। आज भले ही यह स्थान पुरातत्व, पर्यटन और प्रशासनिक उपेक्षा का दंश झेल रहा हो, लेकिन यह स्थान आज भी इतिहास को संजोये हुए है। यहां पर स्थिति राम, सीता और लक्ष्मण कुंड सहित शिवमंदिर विशेष हैं।


समाए हैं अनूठे रहस्य

कटनी जिले में कई ऐसी पुरातातत्विक धरोहरों हैं जो हजारों वर्ष पुराने इतिहास को संजोये हुए है। बहोरीबंद रूपनाथ धाम में पंचलिंगी शिव प्रतिमा है जिसे रूपनाथ के नाम से जाना जाता है। यह कैमोर पहाडिय़ों के एक सिरे पर स्थित है। सबसे नीचे का कुंड सीता कुंड, मध्य का लक्ष्मण कुंड और सबसे ऊपर भगवान राम का कुंड है। बहोरीबंद निवासी सतीश सिंह ने बताया कि पूर्वज बताते हैं कि इन कुंडों का निर्माण सम्राट अशोक ने कराए हैं।



232 ईसापूर्व के हैं शिलालेख

पुरातत्व विभाग के अनुसार रूपनाथ धाम के अवशेष और शिलालेख 232 ईसापूर्व के हैं। संजू गर्ग ने बताया कि सदियों पहले से विभिन्न राजाओं के द्वारा अपनी शौर्य गाथा के प्रचार के लिए शिलालेखों का प्रयोग होता रहा है। ऐसे लेखों को प्रशस्ति लेख कहते हैं। रूपनाथ शिलालेख जो संदेश दे रहा है, वह आज के परिवर्तित परिस्थितियों में भी मायने रखता है। शिलालेख का संस्कृत रूपांतर एक संग्रहालय द्वारा लेख में किया गया है। महाशिवरात्रि पर इस स्थान में विशेष महोत्सव होता है।


यह है रूपांतरण

देवानां प्रिय: एवं आह सातिरेकाणि सार्धद्वयानि वर्षाणि अस्मि अहं श्रावकः न तु वाढ़ं प्रकांतः, सातिरेकः तु संवत्सरः यत् अस्मि संघ उपेतः वाढ़ं तु प्रकांतः। ये अमुस्मैकालाय जूंबद्वीपे अमृषादेवाः अभूवन् ते इदानी मृषाः कृता:। प्रक्रमस्य हि इदं फलम्। न तु इदं महत्तया प्राप्तव्यम्। क्षुद्रकेण हि केनापि प्रक्रमाणेन शक्यः विपुलोस्पि स्वर्गः आराधयितुम, एतस्मै अर्थाय च श्रावणं कृतं क्षुद्रकाः च उदाराः च प्रक्रमन्तां इति। अंता: अपि च जानन्तु अयं प्रक्रम: किमति चिरस्थिकः स्यात्। अयं हि अर्थः वर्धिष्यते। इमं च अर्थ पर्वतेषु लेखयत परत्र इह च। सति शिलास्तंभे लेखितव्यः सर्वत्रविवसितव्यमिति। व्युष्टेन श्रावणं कृत 256 सत्रविवासात्


ऐसा था सम्राट का साम्राज्य

मौर्य साम्राज्य उत्तर में हिन्दुकुश की श्रेणियों से लेकर दक्षिण में गोदावरी नदी के दक्षिण तथा मैसूर तक तथा पूर्व में बांग्लादेश से पश्चिम में अफग़ानिस्तान, इराण तक पहुंच गया था। सम्राट अशोक का साम्राज्य आज का संपूर्ण भारत, पाकिस्तान, अफगाणिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, भूटान, म्यान्मार के अधिकांश भूभाग पर था। अशोक विश्व के सभी महान एवं शक्तिशाली सम्राटों एवं राजाओं की पंक्तियों में हमेशा शीर्ष स्थान पर रहे है। अशोक को अपने विस्तृत साम्राज्य से बेहतर कुशल प्रशासन तथा बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए भी जाना जाता है। सम्राट अशोक प्रेम, सहिष्णूता, सत्य, अहिंसा एवं शाकाहारी जीवनप्रणाली के सच्चे समर्थक थे। 

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इन बातों का शिलालेख में जिक्र

-किसी पशु का वध न किया जाए और राजकीय पाकशाला एवं मनोरंजन उत्सव न किए जाएं।
– मनुष्यों एवं पशुओं के चिकित्सालय खुलवाए जाएं एवं उसमें औषधि की व्यवस्था की जाए। मनुष्यों एवं पशुओं की सुविधा के लिए मार्ग में छायादार वृक्ष लगवाए जाएं एवं राहगीरों के लिए जल की व्यवस्था कुएं खुदवा कर की जाए।
– राजकीय पदाधिकारियों को आदेश दिया गया कि प्रति पांच वर्ष पश्चात धर्म प्रचार के लिए जाएं।
– राजकीय पदाधिकारियों को आदेश दिया गया कि व्यवहार के सनातन नियमों यथा नैतिकता एवं दया का सर्वत्र प्रचार किया जाए।
– धर्ममहामात्रों की नियुक्ति एवं धर्म एवं नैतिकता का प्रचार प्रसार किया जाए।
– राजकीय पदाधिकारियों को स्पष्ट आदेश है कि सर्वलोकहितकारी कुछ भी प्रशासनिक सुझाव एवं सूचना मुझे प्रत्येक स्थान एवं समय पर दें।
– सभी जाति एवं धर्मों के लोग सभी स्थानों पर रह सकें क्योंकि वे आत्म संयम एवं हृदय की पवित्रता चाहते हैं।
– दास तथा अनुचरों के प्रति शिष्टाचार का पालन करें, जानवरों के प्रति उदारता एवं ब्राह्मणो तथा श्रमणों के प्रति उचित व्यवहार करने का आदेश दिया गया।
– अशोक ने घोषणा कि यश एवं कीर्ति के लिए नैतिकता होनी चाहिए।
-धर्म प्रचारार्थ अशोक ने अपने विशाल साम्राज्य के विभिन्न स्थानों पर शिलाओं पर धम्म लिपिबद्ध कराया जिसमें धर्म संबंधी महत्वपूर्ण सूचनाओं का वर्णन है।

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