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हे भगवान : युद्ध भूमि के नायक ‘सिस्टम’ से हारे, 29 साल से जमीन के पट्टे की जारी है जंग

हे भगवान : युद्ध भूमि के नायक ‘सिस्टम’ से हारे, 29 साल से जमीन के पट्टे की जारी है जंग

जबलपुरJun 14, 2024 / 04:36 pm

Lalit kostha

indian Army jk
जबलपुर. देश के लिए दो युद्ध लड़े, अप्रतिम शौर्य के प्रदर्शन पर वीरता पुरस्कार मिला। लेकिन सेना के जवान सरकारी सिस्टम से हार गए। सरकारी वादे के बाद भी 29 साल में उन्हें जमीन का मालिकाना हक नहीं मिल पाया। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने नाराजगी जाहिर करते हुए चार माह में प्रकरण का निराकरण करने के आदेश दिए। इसी के साथ जस्टिस एमएस भट्टी की पीठ ने याचिका का निपटारा कर दिया। याचिकाकर्ता साहेब सिंह बनकर निवासी जिला होशंगाबाद (अब नर्मदापुरम) की ओर से हाईकोर्ट में याचिका 2010 में दायर की गई थी।
हाईकोर्ट ने नाराजगी जताई, प्रशासन को चार माह में प्रकरण के निराकरण के आदेश

जिसमें उन्होंने सेवानिवृत्त फौजी पिता भोला सिंह को आवंटित 15 एकड़ जमीन का पट्टा जारी नहीं करने के सरकारी रवैये का मुद्दा उठाया था। उन्होंने कोर्ट को बताया कि पिता भोला सिंह सेना में रहते हुए देश के लिए दो युद्ध लड़े थे। उनके शौर्य प्रदर्शन को देखते हुए वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। तब उन्हें होशंगाबाद जिले के सोहागपुर तहसील अंतर्गत महुआ खेड़ा ग्राम में 15 एकड़ जमीन आवंटित की गई थी। लेकिन सालों के संघर्ष के बाद भी जमीन का पट्टा नहीं मिला।
सरकार ने 14 साल में नहीं दिया जवाब

तहसील से लेकर प्रदेश की राजधानी तक के अफसर भोला सिंह के परिवार के लिए एक जैसे ही रहे। उनके हर आवेदन को कोने में रख दिया गया। परेशान होकर साहेब ने 2010 में हाईकोर्ट में याचिका दायर की। नोटिस के बाद भी 14 साल में सरकार की ओर से जवाब पेश नहीं किया गया। इसे गंभीरता से लेते हुए हाईकोर्ट की पीठ ने गंभीरता से लेते हुए याचिका का निराकरण करते हुए तहसीलदार सोहागपुर को चार माह में प्रकरण का निराकरण के आदेश दिए।
29 साल से तहसील में दबी है फाइल

याचिकाकर्ता साहेब के अनुसार उनके पिता ने 1995 में सोहागपुर तहसलीदार के समक्ष पट्टा जारी करने के लिए आवेदन दायर किया था। इसके बाद उनके पिता सालों तहसील का चक्कर काटते रहे, लेकिन तहसीलदार की ओर से पट्टा नहीं जारी किया गया। कुर्सी पर अफसर बदलते रहे पर उनकी फाइल जस की तस रुकी रही। पट्टे के लिए संघर्ष करते हुए उनके पिता की मौत हो गई। फिर भी अफसरों ने जमीन का मालिकाना हक नहीं दिया। कुछ साल तक साहेब ने भी तहसील के चक्कर काटे पर कोई परिणाम नहीं निकला।

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