संसाधन व स्टाफ की कमी का हवाला
सुखसागर मेडिकल कॉलेज में डेडिकेटेड कोविड सेंटर बनाने से सरकार का इनकार
ये है मामला
शाजापुर में एक वयोवृद्ध गरीब मरीज को निजी अस्पताल में पलंग से बांधने की अमानवीय घटना पर सुप्रीम कोर्ट के सचिव के पत्र पर मप्र हाइकोर्ट ने संज्ञान लेकर मामला सुनवाई में लिया। इसका दायरा बढ़ाते हुए प्रदेश के सभी निजी अस्पतालों के लिए गाइडलाइन जारी करने पर विचार जारी है। कोर्ट मित्र वरिष्ठ अधिवक्ता नमन नागरथ ने तर्क दिया कि जबलपुर में सुखसागर मेडिकल कॉलेज को क्वारंटीन सेंटर बनाया गया है। लेकिन, वहां उपलब्ध बेड, आइसीयू व ऑक्सीजन आदि सुविधाओं का इस्तेमाल नहीं हो रहा है। कोविड डेडिकेटेड अस्पताल नहीं होने से आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों को कोरोना होने पर इलाज कराना मुश्किल हो रहा है।
आदेश का पालन नहीं
इसी मामले पर कोर्ट के 23 सितम्बर को दिए गए आदेश के तहत एक अक्टूबर को उप महाधिवक्ता एए बर्नार्ड ने पालन रिपोर्ट पेश की थी। वरिष्ठ अधिवक्ता नागरथ ने जवाब पर आपत्ति जताई। उन्होंने कोर्ट को बताया कि प्रदेश स्तर पर अखबारों में विज्ञापन प्रकाशित करने के बजाय कोरोना के इलाज की दरें तय करने की स्थानीय अखबारों में प्रकाशित खबरें हाइकोर्ट के पटल पर पेश की गईं। सुनवाई के बाद कोर्ट ने अपना आदेश सुरक्षित कर लिया।
आइएमए की अर्जी पर बाद में सुनवाई
आइएमए जबलपुर की ओर से अधिवक्ता शिवेंद्र पांडे ने कोर्ट को बताया कि हाल ही में होटलों, धर्मशालाओं, हॉस्टल व अस्पताल के अलावा अन्य जगहों में कोविड-19 से पीडित मरीजों को रखने का प्रावधान किया गया है। कोरोना मरीजों का इलाज सभी मेडिकल सुविधाओं से लैस अस्पताल के अलावा अन्यत्र सम्भव नहीं है। इसलिए होटलों, धर्मशालाओं, हॉस्टल, बारातघरों में कोरोना मरीजों को न रखने के निर्देश दिए जाएं। इस अर्जी पर कोर्ट ने अगले सप्ताह सुनवाई करने का निर्देश दिया।