अजय खरे@जबलपुर। अमरकंटक में एक ऐसा गुणकारी फूल पाया जाता है जिससे मोतियाबिंद की बीमारी दूर होती है। इस चमत्कारी औषधीय पुष्प का नाम है गुल बकावली जिसका वानस्पतिक अंग्रेजी नाम जिंजर लिली है। नेत्र रोगों में उपयोगी इस पुष्प का पौराणिक कथाओं में भी उल्लेख है। इसे नर्मदा नदी के सोन नद से विवाह को लेकर प्रचलित एक कथा में विशेष स्थान दिया गया है।
यह अमरकंटक में बहुतायत में मिलता है। वहां माई की बगिया में भी यह बड़ी संख्या में हैं। श्वेत गुल बकावली के पुष्प जब खिलते हैं तो ऐसा प्रतीत होता है जैसे प्रकृति ने कोई गुलदस्ता बना दिया हो। आयुर्वेद में यह मोतियाबिंद के उपचार में उपयोगी माना गया है । इसे नेत्र रोगों की शर्तिया दवा माना जाता है। प्राचीन काल से लेकर अभी तक लोग इससे मोतियाबिंद का उपचार करते आ रहे हैं। इसके अलावा यह चित्तभंग मनुष्यों के उपचार में भी रामवाण औषधि माना जाता है।
आयुर्वेदाचार्यों के मुताबिक यह अशांत मन को शांत कर नकारात्मक विचारों को नष्ट कर सकारात्मक विचार पैदा करता है। इसे देखने, सूंघने और इसके पास रहने थे मन एकाग्र व शांत होता है। यह सात्विक विचार पैदा करने के साथ ही माइग्रेन जैसे रोगों को दूर करने की क्षमता रखता है। इसके पुष्प कई दिनों तक गुलदस्ता में ताजे बने रहते हैं। चित्त को शांत कर अपनी साधना पूरी करने के लिए योगी इसकी माला धारण करते हैं। इसके फूलों में हानिकारक बैक्टीरिया और वायरस को नष्ट करने की क्षमता होती है।
फूलों के अर्क से दूर होता है मोतियाबिंद
आंखों से संबंधित कोई बीमारी होने या रोशनी चले जाने पर गुल बकावली के फूलों के अर्क से उपचार किया जाता है। बताया गया है कि प्राचीन समय में ऋषि मुनियों को किसी तरह की नेत्र पीड़ा होने पर वे यहां आकर रुकते थे और इसके फूलों से उपचार करते थे। नेत्र रोगों के अलावा शरीर में कहीं सूजन या दर्द होने पर इसके पत्तों को गर्म करके बांधने से लाभ होता है।
सोनभद्र नर्मदा के लिए लाए थे गुल बकावली के फूल
किवदंतियों के अनुसार राजकुमारी नर्मदा राजा मेखल की पुत्री थीं। राजा मेखल ने नर्मदा के विवाह के लिए शर्त रखी थी कि जो राजकुमार उनके लिए गुल बकावली के पुष्प लेकर आएगा उसी से नर्मदा का विवाह करेंगे। राजकुमार सोनभद्र उनके लिए यह फूल लेकर आए और फिर नर्मदा से उनका विवाह सुनिश्चित हुआ पर इसी बीच किसी तरह नर्मदा की सखी जुहिला ने हिंदी फिल्मों की खलनायिका की तरह दोनों के प्यार पर डाका डाला और सोनभद्र जुहिला पर आसक्त हो गया परिणामस्वरूप नर्मदा और सोन का विवाह नहीं हो सका।
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