जबलपुर

Navratra ‘दिवालों’ में मरही, बंजारी और भूलन माता हैं कुल देवी, होती है सबसे अलग पूजा

नवरात्रि में भले ही माता के नौ रूपों की व्याख्या व पूजन का विधान है, लेकिन श्रद्धालु अपने कुल देवी देवताओं का पूजन पहले करते हैं। ये परम्परा सदियों पुरानी है। इनका निर्वहन आज भी पूरी आस्था के साथ किया जा रहा है।

जबलपुरApr 16, 2024 / 02:13 pm

Lalit kostha

जबलपुर. जय हो मरही माता, जय-जय बंजारी माई की…जय बोलो भूले की शक्ति, भूलन माई की…कुछ ऐसे ही जयकारे इन दिनों लोगों के घर में बने देवी दिवालों में प्रतिदिन सुबह शाम सुनाई दे रहे हैं। नवरात्रि में भले ही माता के नौ रूपों की व्याख्या व पूजन का विधान है, लेकिन श्रद्धालु अपने कुल देवी देवताओं का पूजन पहले करते हैं। ये परम्परा सदियों पुरानी है। इनका निर्वहन आज भी पूरी आस्था के साथ किया जा रहा है।
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मरही माता, खेरदाई और खप्पर वाली के उपासक ज्यादा

बुंदेलखंड क्षेत्र में आने वाले जबलपुर समेत मंडला,कटनी, नरसिंहपुर, सिवनी आदि क्षेत्रों लोक देवी देवताओं के उपासक सबसे ज्यादा हैं। सदियों से इन क्षेत्रों में स्थानीय व लोक परंपरा में पूजे जाने वाले देवी देवाता लोगों के कुल देवी देवता हैं। यही कारण है कि यहां शास्त्रों में बताए गए देवी देवाताओं की अपेक्षा इनके मंदिर व दरबार सबसे ज्यादा हैं। घरों के देवी दरबारों में मरही माता, खेरदाई, खप्पर वाली, वनदेवी के दरबार बने हैं। यहां मंत्रों के बजाय तंत्र पूजन होता है। इनकी पूजन विधि पूर्वजों द्वारा तय परम्परानुसार किया जाता है। कहीं जवारे बोने के साथ बाना भी पूजा जाता है। कहीं खप्पर आरती की परम्परा पीढिय़ों से चल रही है।
10वीं सदी से पुराना है बंजारी मां का इतिहास

इतिहासकार प्रो. आनंद राणा ने बताया कि भूलन एवं बंजारी माता के मंदिरों की स्थापना का सटीक अनुमान नहीं लगाया जा सकता। हालांकि, 10वीं सदी से पहले से इनके पूजन एवं स्थापना होती चली आ रही है। बंजारी माता एक देश से दूसरे देश तक व्यापार करने वाले बंजारा समाज के ठीये और दिशा दिग्दर्शिका के रूप में स्थापित में जानी जाती थीं। अधिकतर बंजारी माता की प्रतिमाओं और उनके मंदिर का मुख्य द्वार पूर्व दिशा की ओर ही मिलेगा। वे सूर्य उपासक हुआ करते थे। जंगलों व रास्तों में भटकने वालों को दिशाओं का ज्ञान भी इन मंदिरों के माध्यम से उपलब्ध हो जाता था। जबलपुर जिले की चारों दिशाओं में माता बंजारी के दरबार हैं। गोसलपुर, मंडला रोड की घाटी, तेंदूखेड़ा की पहाड़ी, सिवनी के गणेशगंज की खतरनाक पहाड़ी पर इनके दरबार आज भी आस्था का केंद्र बने हैं।
banjari mata
राहगीर को राह दिखाती थीं भूलन माता
प्रो. आनंद राण ने बताया कि भूलन देवी माता के शहर में दो स्थान बताए जाते हैं। पहला कठौंदा गांव के पीछे बना भूलन देवी दरबार, दूसरा संजीवनी नगर से लगे भूलन गांव की मढिय़ा में माता विराजमान हैं। इनकी स्थापना का सटीक समय कोई नहीं जानता। लेकिन, 8 से 9 सदी पुराने स्थानों में ये शामिल हैं। भूलन गांव का दरबार दक्षिण दिशा की ओर जाने वालों का मार्ग तय करता था। कठौंदा वाला दरबार उत्तर दिशा को प्रदर्शित करता था। जंगलों में जानवरों का भय आदि होता था, ऐसे में यहां से गुजरने वालों के रात्रि विश्राम स्थल व साधना केंद्र भी होते थे।
हर समाज में शामिल है गोंडी परम्परा की पूजा विधि – दसवीं सदी से जो लोग यहां निवास कर रहे हैं, उन सभी समाजों में भले ही पूजन विधि कितनी अलग हो, लेकिन थोड़ी बहुत गोंडी परंपरा की पूजा विधि सभी में शामिल है। बाना छेदन, खप्पर आरती, नींबू रस की धार, आटा की खीर ये सब गोंडी व आदिवासी परम्पराओं में आते हैं।

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