सूखे से निजात पाने हुआ था निर्माण, रानी दुर्गावती ने कराया था मदन महल पहाड़ी पर शारदा माता के मंदिर का निर्माण
स्थानीय जानकारों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण गोंडवाना साम्राज्य की वीरांगना दुर्गावती ने सूखा पडऩे पर करवाया था। साम्राज्य में पड़े भारी सूखा से निजात पाने के लिए वीरांगना दुर्गावती ने माता शारदा का आह्वान किया था। इसके बाद मां शारदा का मंदिर बनवाया गया। रानी ने सावन के सोमवार में मंदिर पर झंडे अर्पित किए थे। झंडे चढ़ाने के बाद तेज बारिश शुरू हुई थी और सूखे से सब को निजात मिली। वर्ष 1556 के दौरान मालवा के अंतिम सुल्तान बाज बहादुर ने गोंडवाना साम्राज्य पर आक्रमण किया था। इस युद्ध में रानी ने अपने पराक्रम का प्रदर्शन किया और बाजबहादुर को रणभूमि से भागना पड़ा था। इस विजय के बाद पूरे गोंडवाना में खुशियां मनाई गई थीं। रानी ने प्रजा के साथ माता शारदा के मंदिर पर विजय ध्वज चढ़ाया था। तब से झंडा चढ़ाने की परम्परा चली आ रही है।
देवी मां की मूल प्रतिमा मंदिर के पिछले हिस्से में स्थापित की गई है, मंदिर के सामने वाली प्रतिमा मूल प्रतिमा नहीं है। देवी मां की यह मूर्ति लगभग 77 साल पुरानी है। माना जाता है कि 100 साल पहले स्थानीय यहां रहने वाले पुजारी को मार दिया गया था और देवी मां की प्रतिमा को खंडित कर दिया गया था। जिसके बाद यहां नई प्रतिमा की स्थापना की गई थी। स्थानीय लोगों की मदद से मंदिर को नया स्वरूप प्रदान किया गया था। देवी मां के मंदिर से कुछ ही दूर सामने वाली पहाड़ी पर भगवान हनुमान का भी मंदिर है जिनके दर्शन किए बिना मां शारदा के दर्शन को अधूरा माना जाता है।
स्वप्न में दिया था संकेत, पहाड़ी पर बना माता शारदा का दरबार
जबलपुर से 21 किलोमीटर दूर बरेला में स्थित मां शारदा का मंदिर प्राकृतिक, भोगोलिक, एतिहासिक एवं दार्शिनिक रूप से अद्भुत है। यह मंदिर आस्था का बड़ा केंद्र है। इस मंदिर के बारे में अनेक मान्यताएं प्रचलित हैं।
हर नवरात्रि में यहां श्रद्धालुओं का मेला लगता है। हालांकि बीते साल की तरह इस बार भी महामारी के चलते माता के मंदिर मे श्रद्धालुओं का प्रवेश वर्जित किया गया है।
पूर्व से स्थित थी मढिय़ा-
शारदा माता का यह दिव्य स्थान बरेला की एक छोटी सी पहाड़ी में पूर्व में ही स्थित था। माता की मढिय़ा बनी हुई थी। जिसकी स्थापना लगभग 1940 में की गई थी।
स्वप्न में दिया संकेत-
स्थानीय निवासी स्व. श्रवण कुमार शुक्ल राज्य परिवहन में ड्राइवर थे। उनके पुत्र आशीष शुक्ला बताते हैं कि एक दिवस माता ने उनके पिता को स्वप्न में पहाड़ी में होने का संकेत दिया। पहाड़ी में जाकर देखा। वहां माता की एक छोटी सी मढिय़ा थी। इसके बाद उन्होंने नौकरी से त्यागपत्र दे दिया। नौकरी छोडऩे पर उन्हें लगभग 70,000 रुपए मिले। जिससे उन्होंने श्री शारदा मंदिर का निर्माण कार्य आरंभ करवाया। 15 जून 1975 को मंदिर निर्मित हुआ। इसके साथ ही मंदिर तक पहुंचने के लिए रास्ते को दुरुस्त करने का कार्य किया गया। पूर्व मंत्री स्व. विमला वर्मा ने रोड का डामरीकरण कार्य कराया।
परिसर में है पूरा शक्तिपरिवार
शारदा मंदिर बरेला भोगोलिक व धार्मिक दृष्टि से अद्भुत है। मंदिर परिसर में पूर्ण शक्ति परिवार उपस्थित है। यहां प्रवेश द्वार पर भगवान शंकर, माता पार्वती, भगवान कार्तिक, भगवान गणेश एवं ब्रह्मचारी नंदी की प्रतिमाएं स्थापित हैं। आगे पवन पुत्र हनुमान की 27 फीट ऊंची प्रतिमा है। मंदिर प्रांगण में माता शारदा के साथ श्री गणेश भगवान, माता काली व लक्ष्मीनारायण की प्रतिमाएं भी है।