मिट्टी की मूर्ति ही श्रेष्ठ
आश्विन कृष्ण पक्ष अष्टमी को घरों में महालक्ष्मी व्रत व पूजन किया जाता है। यह पूजा शाम को की जाती हे। बुधवार को महालक्ष्मी की पूजा के लिए बाजार में महालक्ष्मी व्रत के एक दिन पूर्व मंगलवार को ही चहल-पहल बढ़ गई थी। शहर के प्रमुख चौक चौराहों पर पूजन सामग्री की दुकानें सज गईं। अब जगह-जगह हाथी पर सवार लक्ष्मीजी की आकर्षक मूर्तियां मिल रहीं हैं। अब तो पीतल, चांदी की भी ऐसी मूर्तियां आ रहीं हैं पर इनकी पूजा शास्त्रसम्मत नहीं हैं। ज्योतिर्विद जनार्दन शुक्ला के अनुसार मिट्टी के हाथी पर विराजमान महालक्ष्मी की पूजा ही श्रेष्ठ है। ऐसा करने से महालक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और उनके आशीर्वाद से घर में वाहन आते हैं, धन-धान्य से घर भर जाता है। संतान की उन्नति और परिवार में सुख समृद्धि आती है। अच्छी बात यह भी है कि मिट्टी की हाथी और महालक्ष्मी की प्रतिमा बनाने वाले लोग गली-मोहल्ले में भ्रमण कर बिक्री कर रहे हैं।
१६ ज्योति का है महत्व
इस दिन दिनभर व्रत रखकर सायंकाल पूजन का विधान है। इसे जीवित्त पुत्रिका व्रत भी कहा जाता है। विधान के अनुसार इस दिन महालक्ष्मी पूजन में १६ चीजों का बड़ा महत्व है। पूजन में १६ दीपक, रक्षासूत्र में १६ गठान, १६ प्रकार के फूल एवं दूर्बा से पूजन किया जाता है। ऊंचो सो पुर पाटन गांव… पूजा के साथ जुड़ी पुरानी कहावत को १६ बार पढक़र महालक्ष्मी से सुख समृद्धि की कामना की जाती है। पवित्र तीर्थ में स्नान करने के बाद लक्ष्मीजी की पूजा करना श्रेष्ठ माना जाता है।