मुग्ध थे श्रद्धालु
आस्था और भक्ति के माहौल में चल समारोह से तीन पत्ती चौक से शुरू हुआ। हर प्रतिमा के पीछे भक्तों का रेला था। मां की भक्ति में थिरकते समिति के सदस्य धीरे-धीरे गंतव्य की तरफ बढ़ रहे थे। मां की प्रतिमाओं के स्वागत और पूजन वंदन के दौर में हर श्रद्धालु मुग्ध था। संस्कारधानी के गौरवशाली दशहरा चल समारोह में अपनी शानदार उपस्थिति दर्ज कराने के लिए समिति पदाधिकारियों ने पूरी तैयारी की थी। हर प्रतिमा के साथ बैंड दल, दुल-दुल घोड़ी, अश्वरोही दल पर अन्य झांकियां थीं, जिन्होंने श्रद्धालुओं का आकर्षण में बांधे रखा। आस्था और उमंग की सरिता देर रात तक बहती रही।
फिर आया ये घटनाक्रम
चल समारोह में १६ वें नम्बर पर शामिल गढ़ाफाटक की विशाल महाकाली की प्रतिमा के साथ शामिल श्रद्धालु भक्त झूमते-नाचते कोतवाली पहुंचे। जैसे ही प्रतिमा कोतवाली थाने के सामने पहुंची। समिति पदाधिकारियों ने नारेबाजी शुरू कर दी। उन्होंने प्रतिमा को रोककर थाने के सामने धरना व प्रदर्शन शुरू कर दिया। प्रतिमाओं के दर्शन के लिए शहर और दूर-दराज के इलाकों से आये श्रद्धालुओं को समझ में नहीं आया कि आखिर हुआ क्या है? देखते ही देखते मौके पर हंगामे की स्थिति बन गई। मौके पर भारी संख्या में पुलिस बल पहुंच गया।
कलेक्टर और एसपी भी पहुंचे
कोतवाली थाने के सामने महाकाली की प्रतिमा को रोके जाने और धरना, प्रदर्शन की खबर पर पुलिस और प्रशासन की सांसें फूल गईं। अनहोनी की आशंका को भांपते हुए कलेक्टर महेशचंद्र चौधरी और एसपी शशिकांत शुक्ला भी मौके पर पहुंच गए। उन्होंने धरना-प्रदर्शन कर रहे समिति पदाधिकारियों को समझाया। संस्कारधानी के ऐतिहासिक दशहरा व सौहार्द्र का हवाला दिया। यह क्रम काफी देर तक चला।
पुलिस पर अभद्रता का आरोप
थाने के सामने प्रदर्शन कर रहे समिति पदाधिकारियों का आरोप था कि एक पुलिस कर्मी ने समिति के पदाधिकारी के साथ अभद्रता की। उसने पदाधिकारी को धक्का देते हुए प्रतिमा को जल्द आगे बढ़ाने को कहा। समिति पदाधिकारियों का कहना था कि पुलिस कर्मी यदि प्यार व शांति से बात करते हुए आग्रह करता तो बात नहीं बिगड़ती लेकिन उसने बेहद आपत्तिजनक लहजे में बात की। उसका यह तरीका ठीक नहीं था। इसलिए समिति पदाधिकारी नाराज हुए। कलेक्टर व एसपी के समझाइश के बाद समिति के पदाधिकारी व कार्यकर्ता शांत हुए और प्रतिमा को गंतव्य के लिए रवाना किया। पुलिस का तर्क था कि प्रतिमा के साथ चल रहा एक युवक नशे में था। उसकी वजह से बात बिगड़ी, लेकिन समिति पदाधिकारियों ने इस बात को सिरे से खारिज कर दिया और संस्कारधानी के गौरव व भाईचारे के लिए प्रतिमा को लेकर आगे रवाना हो गए।
लिखी गई सौहाद्र्र की मिसाल
संस्कारधानी की फिजां और दशहरा पर्व एकता, भाईचारा और सौहाद्र्र के लिए प्रसिद्ध है। इस बार भी इसके रंग चल समारोह में दिखाई दिए। पिछले वर्ष की तरह इस वर्ष भी दुर्गा प्रतिमाओं के निकलने के बाद उसी मार्ग से ताजिया जुलूस निकाले गए। शांति और सौहार्द्र के वातावरण में यह क्रम सुबह तक चलता रहा। कहीं दुर्गा प्रतिमाओं के समक्ष मुस्लिम युवक सेवाएं देते नजर आए तो कहीं ताजियों में हिन्दू युवाओं ने सेवा देकर एकता और बंधुत्व का संदेश दिया।