जबलपुर। नवरात्र अंतरमन की शक्तियों को जाग्रत करने का महापर्व है। माता कात्यायनी का दिन आज्ञा चक्र को जाग्रत करने का महापर्व था, तो कालरात्रि का दिन सहस्त्रार चक्र को जगाने का है। बुधवार को मां आदि शक्ति के सातवें यानी कालरात्रि स्वरूप के पूजन किया जाएगा। देखने में तो मां कालरात्रि का स्वरुप भयंकर है, लेकिन वे हैं बड़ी कृपालु, शुभंकरी और कल्याणी। असुर इनके नाम से थर-थर कांपते थे। वहीं इनके पदचाप से देवता गदगद हो जाते थे। मान्यता है कि मां कालरात्रि बुराईयों का शमन करके विजय द्वार खोल देती हैं। साधक साधना के मामले में मां कालरात्रि के पूजन को अहम मानते हैं। कहा जाता है कि भयंकरी यानी भय का हरण करने वाली मां कालरात्रि सहाय हो जाए तो किस्मत का हर कोना चमक उठता है।
इनसे भय भी कांपता है
पं. जनार्दन शुक्ला व अखिलेश त्रिपाठी के अनुसार नवरात्रि के सातवें दिन दिन साधक का मन सहस्त्रार चक्र में स्थित रहता है। उसके लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है। माँ कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है, लेकिन ये सदैव शुभ फल ही देने वाली हैं। इसी कारण इनका एक नाम ‘शुभंकरीÓ भी है। मां कालरात्रि दुष्टों का विनाश करने वाली हैं। दैहिक, दैविक और भौतिक तापों को दूर करती हैं। यंत्र, मंत्र और तंत्र की देवी हैं। दानव, दैत्य, राक्षस, भूत, प्रेत आदि इनके स्मरण मात्र से ही भयभीत होकर भाग जाते हैं। ये ग्रह-बाधाओं को भी दूर करने वाली हैं। इनके उपासकों को अग्नि-भय, जल-भय, जंतु-भय, शत्रु-भय, रात्रि-भय आदि कभी नहीं होते। इनकी कृपा से वह सर्वथा भय-मुक्त हो जाता है।
ऐसे करें पूजन
मां कालरात्रि की देह का रंग काला है। सिर के बाल बिखरे हुए हैं। गले में नरमुंडों की माला है। त्रिनेत्री हैं। इनका वाहन गर्दभ यानी गधा है। स्थापित कलश के समक्ष सप्तमी के दिन गाय के घी का दीपक जलाकर मां कालरात्रि का आवाहन करना चाहिए। मां को मिश्री, मिष्ठान्न, केला, शहद, गुड़, छुआरा आदि का भोग अर्पित करके मीठा पान भी अर्पित करना चाहिए। यदि किसी भी तरह का दैविक, दैहिक या भौतिक ताप हो तो मां को सात नीबुओं की माला चढ़ाना चाहिए। रात्रि में तिल या सरसो के तेल की अखंड ज्योति भी जला सकते हैं। संभव हो तो इस दिन सिद्धकुंजिका स्तोत्र, अर्गला स्तोत्र, काली चालीसा, काली पुराण का पाठ करें। किसी भी तरह की बाधा टिक नहीं पाएगी।
ये भी है दर्शन
ज्योतिषाचार्र्य पं. स्व. हरिप्रसाद तिवारी की पुस्तक के अनुसार पहला दिन शैलपुत्री का है यानि संकल्प चट्टान की तरह होना चाहिए। दूसरा दिन ब्रम्हचारिणी का है। इसका मतलब यही है कि संकल्प की पूर्ति के लिए एक ब्रम्हचारी की तरह सादगीयुक्त होकर जुटना चाहिए। चकाचौंध में फंस जाने वालों की सफलता संदिग्ध होती है। तीसरा दिन सिंहारूढ़ मां चंद्रघंटा का है जो बताता है कि संकल्प की पूर्ति के लिए पूरे सामथ्र्य के साथ जुट जाना चाहिए, लेकिन धैर्य नहीं खोना चाहिए। मां कूष्माण्डा का स्वरूप यही दर्शाता है कि धैर्य के साथ काम करने से ही आपके लिए प्लेटफार्म यानी लक्ष्य की पृष्ठभूमि का सृजन होता है। वरदायक मां उसमें सहायता करती हैं। स्कंदमाता का पंचम स्वरूप भी यही बताता है कि जब संकल्प पक्का हो तो वह पूरा ममत्व छलकाकर भक्तों की सहायता करती हैं। षष्ठम स्वरूप में मां कात्यायनी आज्ञा चक्र को जाग्रत कराकर जीवन संघर्ष में जीत को सुनिश्चित कराती हैं। मां कालरात्रि की साधना सहस्त्रार चक्र को जाग्रत करती है। जिस साधक का सहस्त्रार चक्र जाग्रत हो जाता है, उसकी सफलता में किंचित मात्र में संदेह नहीं रह जाता। विजय और सफलता स्वयं उसका वरण करती है।
– प्रेमशंकर तिवारी
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