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जबलपुर

Language- एमपी का अनोखा गांव, जहां की भाषा है संस्कृत, जानिए यहां के खासियत

नरसिंहपुर के मोहद गांव में सभी बोलते हैं संस्कृत, गांव में कदम रखते ही कानों तक आती है देववाणी की गूंज

जबलपुरAug 29, 2017 / 01:12 pm

Premshankar Tiwari

Language- Unique village of MP where language is Sanskrit

Language- Unique village of MP where language is Sanskrit

जबलपुर। ‘नमो नम:, कथम् अस्ति? अहम् गच्छामि। त्वम् कुत्र अस्ति?..। देववाणी संस्कृत के ये वाक्य नरसिंहपुर जिले की करेली तहसील के मोहद गांव में हर जगह सुने जा सकते हैं। गांव में आते ही लगता है संस्कृत की खुशबू हवा में फैल रही है। इसी का असर है कि यहां बच्चे, जवान, बुजुर्ग सभी धाराप्रवाह संस्कृत बोलते हैं।
कर्नाटक के मैटूर गांव का मॉडल
करेली से छह किमी दूर स्थित मोहद गांव की पहचान आम बोलचाल की भाषा में संस्कृत होने से है। इसे संस्कृत गांव बने 20 साल हो गए हैं। मोहद को कर्नाटक के मैटूर संस्कृत गांव की तरह प्रसिद्ध करने का बीड़ा उठाया था यहां के रहवासी भैयाजी उर्फ सुरेन्द्र सिंह चौहान ने। उनके प्रयासों से मोहद को प्रदेश के नक्शे पर अलग पहचान मिली है।
संस्कृत सीखने वाली लड़कियां अधिक
लगभग 6000 की आबादी वाले मोहद में तीन प्राथमिक स्कूल हैं, जहां संस्कृत की कक्षाएं लगती हैं। साथ ही व्याकरण सिखाने से अधिक वार्तालाप पर जोर दिया जाता है। वर्तमान में मोहद में संस्कृत में संभाष्य (वार्तालाप) सीख चुकी लड़कियों की संख्या ज्यादा है।
देश में 5 संस्कृत गांव
भारत में संस्कृत गांव के रूप में 5 गांव विख्यात हैं। इनमें मैटूर और होशल्ली कर्नाटक में हैं। वहीं मोहद, बगुवार और झीरी मध्यप्रदेश में हैं, जबकि एक अन्य गांव सासन उड़ीसा में है।
एेसे सिखाई
बेंगलूरु से आईं सुचेता बहन ने जबलपुर से संस्कृत शिक्षकों के साथ मिलकर कक्षाएं लगाईं। दिल्ली, बनारस, बेंगलूरु से संस्कृत साहित्य सुलभ कराया। घर और दैनिक इस्तेमाल की चीजों पर उनके संस्कृत शब्दों की पर्ची लगाई। चौपाल, सामूहिक आयोजनों और एक दूसरे से भेंट होने पर संस्कृत में ही वार्तालाप किया जाता है।
शासन का असहयोग
गांव के सरपंच बेनी सिंह पटेल ने संस्कृत गांव की प्रसिद्धि को नई ऊंचाई पर पहुंचाने के लिए शासन से संस्कृत विद्यालय खोलने का प्रस्ताव रखा था। लेकिन, वह किसी अन्य गांव में बना दिया गया। हालांकि, संस्कृत भारती की ओर से भाषा विस्तारक मोहद भेजने का आश्वासन दिया गया है। इन दिनों संस्कृत को बचाए रखने के प्रयासों में बालाराम शर्मा, प्रेमनारायण तिवारी, रामवल्लभ तिवारी, प्रमिला चौहान और विक्रम सिंह चौहान सक्रिय हैं।

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