उस्ताद फकीर चंद का जन्म 1839 में उत्तरप्रदेश में हुआ था। उनके पिता बख्सराम आजीविका के लिए जबलपुर आ गए थे। वे एक नामी वैद्य थे। वे सेहत के प्रति लोगों को न केवल बलिष्ठ बनाते बल्कि रोगों से मुक्ति के लिए देसी दवाओं का उपयोग करते थे। उन्हें शास्त्रों का भी अच्छा ज्ञान था। जब अखाड़ा बनवाने की बात उठी तो उन्होंने अखाड़ा परिसर की दीवारों, दरवाजों और खिड़कियों पर नाडिय़ों पर आधारित सवा लाख शिवलिंग लगवा दिए। ये सभी अभिमंत्रित शिवलिंग हैं, जिनका प्रभाव यहां से गुजरने और पूजन करने वालों में आज भी देखा जाता है।
दान में मिली राशि से कराया निर्माण
इतिहासकार राजकुमार गुप्ता ने बताया कि उस्ताद फकीद चंद मुफ्त में लोगों का इलाज करते थे। उनका कहना था कि दवा असर करने पर जो भी दान मिलेगा, वही उनकी फीस होगी। उन्होंने दान से मिली राशि से अखाड़क का निर्माण कराया था। उनके जीवन पर आधारित नारायण शीतल प्रसाद कायस्थ ने एक ग्रंथ ’फकीर चंद सुयश सागर’ नाम से लिखा, जो उस समय काफी प्रसिद्ध रहा। उनकी प्रसिद्धि सुनकर हैदराबाद की एक बेगम इलाज कराने आई थीं। स्वथ होने पर उन्होंने अखाड़े के लिए बड़ी धनराशि दी थी।
बाणासुर से जुड़ी है शिवलिंग की परंपरा
इतिहासकार राजकुमार गुप्ता ने बताया कि सवा लाख शिवलिंग बनाने की प्रथा आदि काल में बाणासुर के समय मिलती है। श्रीकृष्ण से युद्ध में पराजित होकर बाणासुर ने महादेव से उत्तम और त्रिलोक विजयी पुत्र की प्राप्ति के लिए पत्थरों के शिवलिंग बनाकर नर्मदा में अर्पित किए थे। इससे उसे गगनप्रिय नाम का पुत्र प्राप्त हुआ था। उसने देवताओं को युद्ध में कई बार हराया। इसी परंपरा के तहत आज भी धार्मिक आयोजनों में सवा लाख पार्थिव शिवलिंग का निर्माण भक्तों की ओर से किया जाता है।