यह है मामला
सरकार और प्रशासन की ओर से दायर इस अपील में कहा गया था कि महाराजपुर में खसरा नं. 340, 341, 342 और 343 की .163 हैक्टेयर जमीन का पट्टा लल्लाराम केवट नामक व्यक्ति को 20 मई 1988 को दिए गया था। इस पट्टे के आवंटन को नियम के खिलाफ पाते हुए एडीशनल कलेक्टर ने 29 फरवरी 1992 को निरस्त कर दिया था। उनका मानना था कि विवादित जमीन नगर निगम की सीमा में आती है जो मप्र रेंट कंट्रोल एक्ट से संचालित होती है।
इसके बाद भी निरस्त की लीज
एडीशनल कलेक्टर के जमीन आवंटन निरस्त करने के आदेश को पट्टा पाने वाले ने सिविल कोर्ट में चुनौती दी। सिविल कोर्ट ने 18 अक्टूबर 1994 को डिक्री पारित की। इस फैसले के खिलाफ हुई अपील भी 7 जनवरी, 2000 को निरस्त हो गई। इसके बाद दायर की गई याचिका पर लीज का परीक्षण करके विधि अनुसार कार्रवाई के निर्देश दिए गए थे। इसके बाद कलेक्टर ने लीज निरस्त कर दी।
रेवेन्यू भी ने भी खारिज किया
सरकार के पट्टे की जमीन से जुड़ा यह मामला संभागायुक्त की कोर्ट से होते हुए बोर्ड ऑफ रेवेन्यू तक पहुंचा। बोर्ड ने 16 सितंबर 2015 को जिला प्रशासन का आदेश विधि सम्मत न पाते हुए खारिज कर दिया। इसी फैसले के खिलाफ सरकार और प्रशासन की ओर से एक याचिका दायर की गई, जिसके 23 सितंबर 2016 को खारिज होने पर यह अपील दायर की गई थी।
एकलपीठ के आदेश को उचित ठहराया
हाईकोर्ट में मामले पर हुई सुनवाई के दौरान अनावेदकों की ओर से अधिवक्ता तीरथ राज पिल्लई ने पक्ष रखा। सुनवाई के बाद पूरे मामले पर गौर करके युगलपीठ ने बोर्ड ऑफ रेवेन्यू और एकलपीठ के आदेश को उचित ठहराते हुए सरकार और प्रशासन की ओर से दायर अपील खारिज कर दी।