करीब 50 फुट की ऊंचाई पर शिला स्वरूप भगवान गजानन विराजमान हैं। यहां भगवान का कल्कि स्वरूप है, जो चूहा की सवारी नहीं बल्कि घोड़े पर होते हैं। विशालकाय सूंड धरती के बाहर है और शेष धड़ प्रतीकात्मक रूप से बाहर है। बाकी शरीर पाताल यानि कई फीट नीचे तक बताया जाता है। भगवान को सिंदूर चढ़ाने की रस्में में पूरी शिला को सिंदूर से रंगा जाता है। झंडा और वस्त्र अर्पित करने के साथ अनुष्ठान किया जाता है। मंदिर का क्षेत्र डेढ़ एकड़ में है।
मंदिर समिति के सचिव अनिल कुमार सिंह के अनुसार सुप्तेश्वर गणेश मंदिर में कोई गुम्बद या दीवार नहीं है। प्रकृति स्वरूप उत्पन्न हुए भगवान गणेश मंदिर में दर्शन करने वालों को प्राकृतिक पहाड़ी और हरियाली में भक्ति का अवसर प्राप्त होता है। जिस स्वरूप में भगवान प्रकट हुए, उसी स्वरूप का पूजन किया जाता है।
ऐसी है मान्यता
मंदिर के पुजारी मदन तिवारी के अनुसार गणेशोत्सव में प्रत्येक दिन सुबह धार्मिक अनुष्ठान एवं शाम 7.30 बजे महाआरती की जा रही है। मान्यता है कि भगवान गणेश के 40 दिन नियमित दर्शन करने वाले भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। मनोकामना पूरी होने के बाद लोग दर्शन-अनुष्ठान करते हैं। जो सिंदूर चढ़ाने की अर्जी लगाते हैं, वे लोग सिंदूर चढ़ाते हैं।
इन्होंने की थी सबसे पहले पूजा
बताया गया कि प्रेम नगर में रहने वाली बुजुर्ग सुधा अविनाश राजे ने चार सितम्बर 1989 को गंगा एवं नर्मदा जल से अभिषेक कर सिंदूर और घी चढ़ाकर पूजा की। वे बताती हैं कि उन्होंने स्वप्न में भगवान गणेश का जो स्वरूप देखा था, रतननगर में जाने पर उसी शिला स्वरूप में भगवान के दर्शन हुए। धीरे-धीरे भक्तों की संख्या बढऩे लगी। वर्ष 2009 में सुप्तेश्वर विकास समिति का गठन हुआ। धीरे-धीरे मंदिर ने भव्य स्वरूप ले लिया। मंदिर के रिसीवर तहसीलदार जबलपुर हैं।
30वें स्थापना दिवस पर महाआरती
सुप्तेश्वर गणेश मंदिर के 30 वें स्थापना दिवस के मौके पर स्वामी डॉ. श्यामदेवाचार्य के सान्निध्य में धार्मिक अनुष्ठान व महाआरती की गई। इस मौके पर आचार्य अनुपदेव शास्त्री, समिति के एससी तिवारी, लखन मिश्रा, राकेश पटेल, अशोक वर्मा, विजय चौधरी, किरण कोष्टा, पुष्कल चौधरी, अंजू भार्गव, मंजू पटेल, आशा शर्मा, सीमा सिंह, श्वेता गोंटिया, नीतू शर्मा ने प्रार्थना की।
वर्ष में प्रमुख अनुष्ठान
तीन माह में सिंदूर चढ़ाने की रस्म।
श्रीगणेश चतुर्थी से 11 दिन गणेशोत्सव।
प्रत्येक माह गणेश चतुर्थी को महाआरती।
श्रीराम नवमीं एवं श्रीकृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव।