अजय खरे @ जबलपुर। सामान्य रूप से यह तो सभी लोग जानते हैं कि देश की रक्षा करने के लिए हमारे पास थल, नभ और वायु सेना की बड़ी ताकत है पर यह कम ही लोग जानते हैं कि देश पर जब चीन ने हमला किया तो हमारे देश की रक्षा शत्रुओं का नाश करने वाली देवी धूमावती ने की थी। कहा जाता है कि मां धूमावती जब टैंक पर सवार होकर हाथ में हंटर लिए अपने विशाल संहारक रूप में युद्ध क्षेत्र में पहुंचीं तो चीनी सेना में हाहाकर मच गया और उसी के तुरंत बाद युद्ध विराम की स्थिति बनी। उनका प्रमुख मंदिर श्रीपीतांबरा पीठ दतिया में है।
राष्ट्र गुरू श्रीस्वामीजी महाराज ने किया था अनुष्ठान
1962 में जब भारत पर चीन ने आक्रमण किया तो उस समय भारत की सेना लगातार पीछे हटती जा रही थी। ऐसे में देश पर आए संकट को दूर करने के लिए श्री पीतांबरा पीठ दतिया के संस्थापक श्रीस्वामीजी महाराज ने राष्ट्र रक्षा अनुष्ठान का निर्णय लिया। इसके लिए देश भर से प्रमुख आचार्य जुटाए गए और श्रीस्वामीजी महाराज के मार्गदर्शन में विशेष यज्ञ किया गया।
यज्ञ के दौरान प्रकट हुईं धूमावती देवी
कहा जाता है कि यज्ञ के दौरान मां धूमावती प्रकट हुईं और उन्होंने प्रमुख आचार्य से अपने साथ रण क्षेत्र में चलने को कहा पर वे डर गए और नहीं गए। जिसके बाद मां धूमावती अकेले ही युद्ध क्षेत्र में पहुंचीं। वहां चीनी सेना ने एक टैंक पर देवी के विशाल संहारक रूप को देखा जिनके एक हाथ में बड़ा हंटर था। उनके विकराल, भयानक रूप को देख चीनी सेना में हाहाकर मच गया और उसके सैनिकों में भगदड़ मच गई। जिसका परिणाम युद्ध विराम हुआ।
भयंकर रूप है माई का
धूमावती माई का मंदिर श्रीपीतांबरा पीठ दतिया में है। माई का रूप इतना भयानक और डरावना है कि एकांत में उनके दर्शन करने पर कमजोर दिल वाला डर सकता है। माई के दर्शन सुबह और शाम आरती के समय कुछ ही देर के लिए होते हैं।
काग है माई का वाहन
धूमावती माई का वाहन कौवा है। रथ पर सवार माई का वाहन काग खींच रहा है। माई की मूर्ति श्याम वर्ण और अत्यंत डरावने रूप में है।
शनिवार को लगती है भीड़
शनिवार को माई के विशेष दर्शन होते हैं। दर्शन के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। खास तौर पर ग्वालियर, मुरैना, झांसी आदि पड़ोसी जिलों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु शनिवार को माई के दर्शन करने पहुंचते हैं।
यह है दर्शन का समय
माई का मंदिर प्रतिदिन सुबह- शाम 8 बजे से 8.15 तक खुलता है पर शनिवार को सुबह 7.30 से 9 बजे तक और शाम को 5.30 से 8.30 बजे तक खुलता है।
तामसी भोजन करती हैं माई धूमावती
धूमावती माई को तामसी व्यंजन पसंद हैं। उन्हें प्रसाद के रूप में नमकीन, कचौड़ी, समोसा, मगौड़ा आदि अर्पित किए जाते हैं। शनिवार के दिन मंदिर के प्रसाद काउंटर और अन्य मिष्ठान दुकानों पर मिष्ठान के अलावा नमकीन व्यंजन भी बेचे जाते हैं।
सुहागन स्त्रियों के लिए वर्जित हैं दर्शन
माई का स्वरूप अत्यंत क्रूर माना गया है। उनका रूप वैधव्य का है। कहा जाता है कि एक बार माई को भूख लगी तो वे अपने पति को खा गईं जो धूम्र अर्थात धुएं के रूप में उनके मुंह से निकले। जिससे उनका नाम धूमावती पड़ा। सुहागन स्त्रियों के लिए धूमावती के दर्शन वर्जित हैं। इस संबंध में मंदिर में बोर्ड भी लगे हैं जिन पर लिखा है कि सौभाग्यवती स्त्रियां धूमावती के दर्शन न करें।
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