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Dala Chhath puja 2021: इस महा पर्व का है वैज्ञानिक व ज्योतिषीय महत्व

Dala Chhath puja 2021: चार दिवसीय व्रत पर्व का दूसरा दिन “खरना”

जबलपुरNov 09, 2021 / 11:33 am

Ajay Chaturvedi

डाला छठ

डाला छठ

जबलपुर. सूर्योपासना के चार दिवसीय महा पर्व डाला छठ (Dala Chhath puja 2021) के दूसरे दिन यानी कार्तिक शुक्ल पंचमी तिथि को खरना के रूप में मनाने की मान्यता है। यह दिन मंगलवार यानी 9 नवंबर को है। इस दिन व्रतीजन दिन भर का निराजल उपवास रखते हुए शाम को चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही प्रसाद ग्रहण करेंगे। सूर्योपासना के निराजल व्रत का ये पहला दिन होगा। इस दिन को खरना के नाम से भी जाना जाता है।
खरना के दिन दिन भर का निराजल उपवास कर, व्रतीजन व परिवार के लोग शुद्ध तन-मन से मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ी जला कर गुड़ से बनी खीर पकाएंगे, शुद्ध आटे की रोटी बनेगी। ये खीर और घी में चुपड़ी रोटी ही आज के दिन का प्रसाद होता है जिसे चंद्रमा को अर्घ्यदान के बाद व्रती भी ग्रहण करेंगे और परिवार समेत मित्र-दोस्त, पास पड़ोस के लोगों में भी वितरित किया जाएगा।
चंद्रमा को अर्घ्यदान के बाद व्रती और परिवार के लोग सूर्य देव व छठी मैया की पूजा गीत गाएंगे। भजन कीर्तन का क्रम रात भर चलता है। अगले दिन यानी षष्ठी तिथि को भी दिन भर का निराजल उपवास रखा जाएगा। फिर अस्ताचल गांमी सूर्य को पहला अर्घ्य दिया जाएगा।
डाला छठ
वैज्ञानिक और ज्योतिषीय दृष्टि से भी है बड़ा महत्व


डाला छठ जिसे सूर्य षष्ठी भी कहते हैं का वैज्ञानिक और ज्योतिषीय दृष्टि से भी बड़ा महत्व है। कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि एक विशेष खगोलीय अवसर है, जिस समय सूर्य धरती के दक्षिणी गोलार्ध में स्थित रहता है। इस दौरान सूर्य की पराबैंगनी किरणें पृथ्वी पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्र हो जाती है। इन हानिकारक किरणों का सीधा असर लोगों की आंख, पेट व त्वचा पर पड़ता है। ये पराबैंगनी किरणें मनुष्य को हानि न पहुंचाए, इस वजह से सूर्य पूजा का महत्व बढ़ जाता है। कहा जाता है कि छठ पर्व पर सूर्य देव की उपासना व अर्घ्य देने की जो प्रक्रिया है जिसके तहत व्रती व उसके साथ के लोग नदी या सरोवर में स्नान के बाद गीले कपड़ों में कमर तक खड़े हो कर अर्घ्य देते हैं, उस वक्त सूर्य से निकलने वाली किरणें अर्घ्य के जलधार से छन कर आती हैं जिसका सकारात्मक प्रभाव शरीर पर पड़ता है। अब ये प्रक्रिया शाम व सुबह दोनों वक्त अपनायी जाती है ऐस में दोनों वक्त की सूर्य किरणों का प्रभाव मनुष्य के शरीर पर पड़ता है जो लाभकारी माना गया है।
धार्मिक और सांस्कृतिक आस्था का है लोकपर्व

छठ पूजा धार्मिक और सांस्कृतिक आस्था का लोकपर्व है। सनातन हिन्दू धर्म में सूर्य की उपासना का विशेष महत्व है। वे ही एक मात्र प्रत्यक्ष देवता है। वेदों में सूर्य देव को जगत की आत्मा कहा गया है। सूर्य के प्रकाश में कई रोगों को नष्ट करने की क्षमता पाई जाती है। सूर्य के शुभ प्रभाव से व्यक्ति को आरोग्य, तेज और आत्मविश्वास की प्राप्ति होती है। वैदिक ज्योतिष में सूर्य को आत्मा, पिता, पूर्वज, मान-सम्मान और उच्च सरकारी सेवा का कारक कहा गया है। छठ पूजा पर सूर्य देव और छठी माता के पूजन से व्यक्ति को संतान, सुख और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। सांस्कृतिक रूप से छठ पर्व की सबसे बड़ी विशेषता है इस पर्व की सादगी, पवित्रता और प्रकृति के प्रति प्रेम।
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डाला छठ पर सूर्य देव और छठी मैया की पूजा का विधान

छठ पूजा में सूर्य देव की पूजा की जाती है और उन्हें अर्घ्य दिया जाता है। सूर्य प्रत्यक्ष रूप में दिखाई देने वाले देवता है, जो पृथ्वी पर सभी प्राणियों के जीवन का आधार हैं। सूर्य देव के साथ-साथ छठ पर छठी मैया की पूजा का भी विधान है। पौराणिक मान्यता के अनुसार छठी मैया या षष्ठी माता संतानों की रक्षा करती हैं और उन्हें दीर्घायु प्रदान करती हैं।
शास्त्रों में षष्ठी देवी को ब्रह्मा जी की मानस पुत्री भी कहा गया है। पुराणों में इन्हें मां कात्यायनी भी बताया गया है, जिनकी पूजा नवरात्रि में षष्ठी तिथि पर होती है। षष्ठी देवी को ही बिहार-झारखंड में स्थानीय भाषा में छठ मैया कहा गया है।
छठ पूजा चार दिनों तक चलने वाला लोक पर्व है जिसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से होती है और कार्तिक शुक्ल सप्तमी को इस पर्व का समापन होता है।

खरना से शुरू होगा निराजल व्रत, दिया जाएगा चंद्र देव को अर्ध्य
छठ पूजा का दूसरा दिन होता है खरना। खरना का मतलब पूरे दिन के उपवास से है। इस दिन व्रत रखने वाला व्यक्ति जल की एक बूंद तक ग्रहण नहीं करता है। संध्या के समय चंद्रमा को अर्घ्यदान के पश्चात गुड़ की खीर, घी लगी हुई रोटी और फलों का सेवन करते हैं। साथ ही घर के बाकि सदस्यों को इसे प्रसाद के तौर पर दिया जाता है।
डूबते सूर्य को पहला अर्घ्य दान
छठ पर्व के तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को संध्या के समय ढलते सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है। शाम को बांस की टोकरी में फल, ठेकुआ, चावल के लड्डू आदि से अर्घ्य का सूप सजाया जाता है, जिसके बाद व्रती अपने परिवार के साथ सूर्य को अर्घ्य देते या देती हैं। अर्घ्य के समय सूर्य देव को जल और दूध चढ़ाया जाता है और प्रसाद भरे सूप से छठी मैया की पूजा की जाती है। सूर्य देव की उपासना के बाद रात्रि में छठी माता के गीत गाए जाते हैं और व्रत कथा सुनी जाती है।
उगते सूर्य को अर्घ्य संग पूर्णाहुति
छठ पर्व के अंतिम दिन सुबह के समय उगते सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है। इस दिन सुबह सूर्योदय से पहले नदी के घाट पर पहुंचकर उगते सूर्य को अर्घ्य देते हैं। इसके बाद छठ माता से संतान की रक्षा और पूरे परिवार की सुख शांति का वर मांगा जाता है। पूजा के बाद व्रती कच्चे दूध का शरबत पीकर और थोड़ा प्रसाद खाकर व्रत को पूरा करते हैं, जिसे पारण या परना कहा जाता है।
पूजा सामग्री
– बांस की 3 बड़ी टोकरी, बांस या पीतल के बने 3 सूप, थाली, दूध और ग्लास या लुटिया
-चावल, लाल सिंदूर, दीपक, नारियल, हल्दी, गन्ना, सुथनी, सब्जी और शकरकंदी
– नाशपती, बड़ा नींबू, शहद, पान, साबुत सुपारी, कैराव, कपूर, चंदन और मिठाई
– प्रसाद के रूप में ठेकुआ, मालपुआ, खीर-पुड़ी, सूजी का हलवा, चावल के बने लड्डू लें
अर्घ्य देने की विधि
बांस की टोकरी में रखी जाती है समस्त पूजा सामग्री। सूर्य को अर्घ्य देते समय सारा प्रसाद सूप में रखा जाता है और सूप में ही दीपक जलाया जाता है। फिर नदी या सरोवर में उतरकर सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है।
छठी मैया का महात्म्य

छठ पर्व पर छठी माता की पूजा की जाती है, जिसका उल्लेख ब्रह्मवैवर्त पुराण में भी मिलता है। एक कथा के अनुसार प्रथम मनु स्वायम्भुव के पुत्र राजा प्रियव्रत को कोई संतान नहीं थी। इस वजह से वे दुःखी रहते थे। महर्षि कश्यप ने राजा से पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ करने को कहा। महर्षि की आज्ञा अनुसार राजा ने यज्ञ कराया। इसके बाद महारानी मालिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया लेकिन दुर्भाग्य से वह शिशु मृत पैदा हुआ। इस बात से राजा और अन्य परिजन बेहद दुःखी थे। तभी आकाश से एक विमान उतरा जिसमें माता षष्ठी विराजमान थीं। जब राजा ने उनसे प्रार्थना कि, तब उन्होंने अपना परिचय देते हुए कहा कि- मैं ब्रह्मा की मानस पुत्री षष्ठी देवी हूं। मैं विश्व के सभी बालकों की रक्षा करती हूं और निःसंतानों को संतान प्राप्ति का वरदान देती हूं।
इसके बाद देवी ने मृत शिशु को आशीष देते हुए हाथ लगाया, जिससे वह जीवित हो गया। देवी की इस कृपा से राजा बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने षष्ठी देवी की आराधना की। ऐसी मान्‍यता है कि इसके बाद ही धीरे-धीरे हर ओर इस पूजा का प्रसार हो गया।
छठ पूजा मुहूर्त के लिए
10 नवंबर-षष्ठी तिथि (संध्या अर्घ्य) सूर्यास्त का समय :5:27
11 नवंबर- सप्तमी तिथि उषा अर्घ्य सूर्योदय का समय :6:34

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