शहर व आसपास के जिलों में सप्लाई, करोड़ों रुपए का हुआ कारोबार
बिना जांच रोज खप रहा 900 पेटी बोतलबंद और 1600 केन आरओ वाटर
पहले सफर में इस्तेमाल
पहले बोतलबंद पानी का इस्तेमाल सफर में ज्यादा होता था। अब यह रोज की दिनचर्या में शामिल हो गया है। इसका सबसे बड़ा फायदा उन कंपनियों को होता है जो कि बोतलबंद पानी का विक्रय करती हैं। लेकिन पानी की गुणवत्ता की जांच महज रस्मी ही है। यहां तक कि आरओ प्लांट की पड़ताल भी नहीं हो रही है। इससे पता नहीं चलता कि रॉ वाटर है शोधित पानी उन तक पहुंच रहा है। शहर में रोजाना करोड़ों रुपए का कारोबार होता है। पांच बड़ी कंपनियों का कारोबार 60 से 70 प्रतिशत है। बाकी स्थानीय कंपनियों का पानी बिकता है। सबको इसकी छूट जैसी है।
पांच के पास लाइसेंस
जिले में पैकेज्ड ङ्क्षड्रङ्क्षकग वाटर के लिए पांच कंपनियों ने खाद्य एवं औषधि विभाग से लाइसेंस ले रखा है। हालांकि इसके अलावा भी इकाइयां चलती हैं। वहीं लूज वाटर वाले आरओ प्लांट की संख्या 55 से अधिक है। विभाग के अनुसार इस तरह के प्लांट लगाने वालों को लाइसेंस की अनिवार्यता नहीं है। हां इनकी सेंपङ्क्षलग की जाती है। पर कार्रवाई शून्य है।
मिनरल और पैकेज्ड वाटर में अंतर
विशेषज्ञों ने बताया कि मिनरल वाटर में खनिजों को अलग से मिलाया जाता है। दूसरी तरफ पैकेज्ड वाटर साधारण पेयजल होता है। कंपनियां पानी को शुद्ध करने के लिए रिवर्स आसमोसिस (आरओ) और अल्ट्रा वायलेट (यूवी) तकनीक का इस्तेमाल करती हैं।