हमारी असावधानी कहां है ? हम दैनिक व्यवहार में कार्य करते हैं प्रयास होता है पूर्ण सावधानी के साथ कार्य करना। दर्पण में हम दिखते तो साफ-सुथरे हैं लेकिन भीतर से हम साफ-सुथरे नहीं होते हमें अपने कर्मों से शरीर के अंदर भी साफ सफाई करनी चाहिए। कुंदकुंद देव ने कहा है कि पाप बंध से स्वयं एवं दूसरों को बचाना चाहिए।
हमे भोजन, कर्म ,कार्य जो भी करते हैं इस पर ध्यान देना चाहिए , आयु कर्म का उपयोग करना चाहिए दुरुपयोग नहीं, समयसार ग्रंथ में लिखा है , अकाल मृत्यु क्यों होती है ,श्वास की दुर्बलता से अकाल मृत्यु हो जाती है। हमारे ग्रंथों में तो शयन विधि का भी अध्ययन किया गया है , मूलाचार ग्रंथ में लिखा है की कषाय के साथ भोजन करने से भोजन अच्छा भी हो पर यदि भोजन करते समय विचार अच्छे नहीं है या क्रोध- कषाय के साथ भोजन किया जाए तो वह पाचन में गड़बड़ी उत्पन्न करता है ।
अनेक प्रकार के भावों से पाप का बंध होता है। आजकल तो लोग व्यापार धंधे में झूठ भी बड़ी सावधानी से बोलते हैं ताकि पकड़े ना जाए लेकिन यदि ग्राहक पक्का बनाना है तो झूठ नहीं सच का सहारा लेना चाहिए , यदि ग्राहक की तकलीफ को हम समझे और सावधानीपूर्वक विचार करें निराकरण करे तो हमारी तरक्की निश्चित है ।
हमें बोलने सुनने व्यवहार करने पढ़ने सभी कार्य सावधानीपूर्वक करना चाहिए श्रावक हो श्रमण सावधानी से ही चलना चाहिए, आज कहते हैं कि हमें टेंशन है , टेंशन का मतलब होता है मानसिक अवसाद डिप्रेशन मैंने कहा की इंटेंशन समझोगे तो टेंशन नहीं होगा। मूलगुण को मूल गुण के रूप में ही स्वीकार करो , जब भावों की निर्जरा होती है तभी मुक्ति होती है । कुंदकुंद आचार्य ने श्रावको के गुण और दायित्व बताएं उनका अध्ययन करो। अशांति को छोड़ दो तो जीवन मे शांति अवश्य मिलेगी।