हरदा की दो वर्षीय हर्षिता ने 4 माह पहले टूथपेस्ट का ढक्कन गटक लिया था। परिजनों ने डॉक्टरों को दिखाया तो एमआरआई व एक्स-रे में कुछ पता नहीं चला। इसके बाद डॉक्टरों ने ढक्कन मल द्वार से निकलने की संभावना जताई, लेकिन कुछ दिन बाद बच्ची को सांस लेने में तकलीफ होने लगी। कई अस्पताल और डॉक्टरों को दिखाने के बाद भी मर्ज पकड़ में नहीं आ रहा था। हालत ज्यादा बिगडऩे पर परिजन बच्ची को इंदौर लेकर पहुंचे और डॉ. यशलाहा से संपर्क किया। हड़ताल के चलते पहले उन्होंने इंकार किया, लेकिन परिजनों ने इमरजेंसी की बात कही तो निजी अस्पताल में ले जाने को कहा। जहां अपने सामने सीटी स्कैन कराया, जिसमें नाक और गले के बीच फोकस किया गया तो कोई चिज फंसी होने का पता चला। बच्ची को भर्ती कर मंगलवार सुबह इंडोस्कोप से जांच की गई तो ढक्कन नजर आया। ढक्कन इतनी बुरी तरह फंसा था कि उसे पहले उसे ढकेलकर गले में गिराया गया और दो घंटे की जटिल सर्जरी के बाद निकाला गया। डॉ. यशलाहा ने बताया, यह बेहद असान्य मामला था। चार माह तक बच्ची असहनीय दर्द झेल रही थी। ढक्कन का संकरा हिस्सा सांस लेने के साथ गले में जाने की बजाए नाक के पीछे फंस गया। सांस लेने के साथ वह अंदर धंसता गया। इस कारण बच्ची को अंत में सांस लेने में कठिनाई के साथ सांस में बदबू आ रही थी। समय रहते सर्जरी नहीं की जाती तो बच्ची की जान बचाना मुश्किल हो जाता।
आप भी मासूमों के मामलों में रखें यह बातें ध्यान भोजन-नली में ठोस चीजें फंसने पर लक्षण: कई बार बच्चे सिक्के, प्लास्टिक के टुकड़े, पेन का ढक्कन या पिन वगैरह निगल लेते हैं। वहीं खाने की ठोस चीजें कभी-कभी गले में जाकर भोजन नली में फंस जाती हैं। ऐसे में गले में दर्द, निगलने में तकलीफ, लगातार लार आना व असहज होने जैसे लक्षण सामने आ सकते हैं।
सांस-नली में अटकने पर: विशेषकर पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में मूंगफली का दाना, बादाम गिरी, चना, तरबूज-खरबूज के बीज, नट्स, प्लास्टिक की छोटी सीटी आदि गले से सांस-नली में पहुंच जाते हैं। यह स्थिति इमरजेंसी की भी हो सकती है। इस दौरान खाते-खाते एकदम से लगातार खांसी, सांस लेने में तकलीफ,सांस में आवाज व घबराहट जैसे लक्षण हो सकते हैं। ज्यादा दिन बीतने पर बार-बार बुखार के साथ सांस लेने में परेशानी हो सकती है।
इलाज : सबसे ज्यादा परेशानी सांस-नली में फंसने पर होती है। ऐसे में एक्सरे या दूरबीन की मदद से फंसी हुई चीज की स्थिति देखी जाती है। अगर स्थिति इमरजेंसी की हो तो ब्रोंकोस्कोपी से फंसी चीज को तुरंत निकालना जरूरी होता है अन्यथा बच्चे की सांस में रुकावट के चलते जान पर बन आती है। यह सुविधा गिनी-चुनी जगहों, विशेषकर मेडिकल कॉलेज के अस्पतालों में उपलब्ध रहती है। वहीं भोजन-नली में फंसी वस्तु को इसोफेगोस्कोपी की मदद से बाहर निकाला जाता है। कभी-कभी ये चीजें अपने आप ही पेट में जाकर मल-मार्ग से बाहर निकल जाती हैं।
ध्यान रखें : किसी भी वस्तु के फंसने का पता लगते ही तुरंत विशेषज्ञ से संपर्क करें। खुद डॉक्टर न बनें न ही किसी झोलाछाप की बातों में आएं।बच्चों को सिक्के, प्लास्टिक की छोटी चीजें या ऐसी कोई वस्तु न दें जिससे ऐसी समस्या हो। कोई भी चीज लेटाकर न खिलाएं। न ही खेलते समय खाने के लिए कुछ दें।चीज फंसी होने पर बच्चों को कुछ भी न खिलाएं-पिलाएं क्योंकि जनरल ऐनेस्थेसिया देने की स्थिति में बच्चे का खाली पेट होना जरूरी होता है।