भाजपा में महापौर प्रत्याशियों को लेकर रोजरोज नए-नए नाम सामने आ रहे हैं। अब तक एक दर्जन से अधिक दावेदार सामने आए हैं, लेकिन फैसला 15 जून के बाद ही होगा। वजह साफ है कि उससे पहले मंथन के दौर चलेंगे। फिर तय
होगा कि किसको लड़ाया जाए। कांग्रेस इस बार अलग ही अंदाज में है, क्योंकि विधायक संजय शुक्ला को पहले ही मैदान में उतार दिया है।
उन्होंने एक नंबर विधानसभा में जैसे चुनाव जीता था वैसे ही बिसात जमाना शुरू कर दी है। विधानसभा में उनके चमत्कार से सब वाकिफ हैं। 2013 के चुनाव में सुदर्शन गुप्ता 54 हजार से जीते थे तो 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने यहां से 88 हजार की लीड ली थी। इतने बड़े आंकड़े को काटते हुए उन्होंने दस हजार से जीत हासिल कर ली। उस समय भी मोदी का मैजिक जनता में बरकरार था।
शुक्ला ने निगम चुनाव में भी अभी से सोशल इंजीनियरिंग शुरू कर दी है। हमेशा टुकड़ों में बंटी रहने वाली कांग्रेस एक सूत्र में नजर आ रही है तो पार्षद का चुनाव लडऩे वालों की होड़ मची हुई है। कांग्रेस खेमे के इतनी दमदारी से खड़े होने के बावजूद भाजपा में कोई बड़ी हलचल नहीं है। प्रत्याशी को लेकर चर्चा तक नहीं हो रही है। भाजपा को अंतिम दौर में टिकट घोषित करना राऊ विधानसभा चुनाव की तरह भारी न पड़ जाए।
यहां भी पार्टी ने आखिरी समय में मधु वर्मा को टिकट दिया था जब तक जीतू पटवारी अपना आधा जनसंपर्क कर चुके थे। कई जगहों पर वर्मा जनसंपर्क भी नहीं कर पाए। उसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा। पांच नंबर में भी सत्यनारायण पटेल महज एक हजार वोट से ही चुनाव हारे हैं। हालांकि भाजपा का संगठन पूरी ताकत से काम पर जुट गया है। नगर अध्यक्ष गौरव रणदिवे मंडल स्तर पर बूथ के कार्यकर्ताओं की बैठक लेकर जोश भरने का काम जरूर कर रहे हैं।
लडऩे के लिए खड़ी फौज
भाजपा में महापौर के दावेदारों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। विधायक रमेश मेंदोला, पूर्व विधायक सुदर्शन गुप्ता, जीतू जिराती, गोपी नेमा व मधु वर्मा का नाम खुलकर सामने आ रहा है तो नगर अध्यक्ष रणदिवे के अलावा उमेश शर्मा, मुकेश राजावत व गोलू शुक्ला का नाम चल रहा है। इधर, संघ कोटे से निशांत खरे और पुष्यमित्र भार्गव को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है।
उनके अलावा विनय पिंगले के साथ विकास दवे का नाम भी अचानक सामने आया है। हालांकि दवे की ओर से बात को गलत बताया। खरे के नाम को मजबूत माना जा रहा है, क्योंकि संघ के मालवा प्रांत में वे खासी पकड़ रखते हैं। सरकारी अमले की एक बड़ी लॉबी उन्हें पसंद करती है तो सांसद शंकर लालवानी से खासी नजदीकियां हैं। कोरोना व उसके बाद भी लगातार काम करने से मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की गुडलिस्ट में वे हैं। वैसे भी इंदौर को तो भाजपा प्रयोगशाला मानती है तो यहां कुछ भी असंभव नहीं है। ये भी तय है कि इंदौर में भाजपा से उसको ही टिकट मिलेगा जो मुख्यमंत्री को पसंद होगा।
सोशल इंजीनियरिंग पर फोकस
भाजपा को मालूम है कि थोड़ी सी भी चूक भारी पड़ सकती है। इसलिए पार्टी सोशल इंजीनियरिंग पर फोकस करेगी। मुस्लिम वोट थोकबंद कांग्रेस को मिलता है तो दलित वर्ग में आज भी उसकी पकड़ मजबूत है। ऐसे में ब्राह्मण समाज
साथ हो जाएगा तो परेशानी आ सकती है। हालांकि इसकी संभावनाएं बहुत कम हैं, लेकिन विधानसभा चुनाव के परिणाम के बाद से पार्टी डरी हुई है। इनके अलावा इंदौर में एक बड़ा वोट बैंक मराठी, बनिया व सिंधी समाज का है जो परंपरागत भाजपा का है।