स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत 2 अक्टूबर 2014 को हुई थी, लेकिन वर्ष 2017 में इंदौर पहली बार देश का सबसे स्वच्छ शहर घोषित हुआ। तब से अब तक छह बार से इंदौर लगातार नंबर-1 है। इंदौर ने सफाई के साथ कचरे के निपटान में बेहतर कार्य किए हैं। शहर के स्वच्छता मॉडल को देखने 700 शहरों से दल आ चुके हैं और इंदौर के मॉडल को अपना रहे हैं। हालांकि वे कचरा संग्रहण और निपटान में इंदौर से काफी पीछे हैं। आइआइएम-इंदौर में शहर के स्वच्छता मॉडल के बारे में पढाया जा रहा है। किसी भी शहर को स्वच्छता में अव्वल आने के लिए कचरा संग्रहण और निपटान जरूरी है। इंदौर इसमें अव्वल है। इंदौर में छोटे-बड़े 550 एनजीओ काम कर रहे हैं। ये शुरू से नगर निगम के सहयोगी के तौर पर आम जन को स्वच्छता का महत्व समझा रहे हैं।———–
शहर ने ऐसे रचा कीर्तिमान डोर-टू-डोर कलेक्शन: शहर में कचरा पेटियां नहीं हैं। लगभग 2000 वाहनों से कचरा घरों से कचरा ट्रांसफर स्टेशनों तक पहुंचता है। दूसरे शहर शत-प्रतिशत यह काम नहीं कर पाए हैं।
वेस्ट सेग्रिगेशन: घरों से ही गीला-सूखा, प्लास्टिक, सेनेटरी वेस्ट, इलेक्ट्रिक आदि कचरा अलग-अलग हो जाता है। कई शहरों ने इंदौर का यह मॉडल अपनाया। सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट: दस से अधिक सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट बने। सीवरेज के ट्रीट हुए पानी 100 सौ से अधिक गार्डन में पहुंचाया जाता है।
कचरे से कमाई: देवगुराडि़या में एशिया का सबसे बड़ा बायो सीएनजी प्लांट है। यहां निर्मित सीएनजी गैस नगर निगम के वाहनों में उपयोग होती है। निजी गैस कंपनी को भी गैस बेची जा रही है।
थ्री आर मॉडल: निगम ने रिसायकल, रियूज व रिड्यूज माॅडल लागू किया। एक हजार से ज्यादा बैकलेन में सीमेंटीकरण किया, पेटिंग बनाई, बेकार चीजों से कलाकृतियां बनाईं। थ्री आर माॅडल पर गार्डन बनाए। रहवासियों को गीले कचरे से खाद बनाने को प्रेरित किया।———
हमारी ताकत – 7000 से अधिक सफाईकर्मी दिन-रात सफाई करते हैं। इनमें आधी से अधिक महिलाकर्मी हैं।- स्वीपिंग मशीन से सड़कों की सफाई होती है। रात में मुख्य सड़काें पर यह काम होता है।
– गीले-सूखे कचरे का शत-प्रतिशत निपटान।- ट्रेंचिंग ग्राउंड में बगीचा बनाया गया है। कचरा खत्म होने से दुर्गंध की समस्या खत्म हुई।