हम बात कर रहे हैं पालीवाल नगर में रहने वालीं 77 वर्षीय मनोरमा श्रीवास्तव की। मनोरमा ने बताया, पति नरेंद्र नारायण श्रीवास्तव का देहांत होने के बाद अकेली हो गई। घर में बेटे-बहू, नाती-पोतों से भरा पूरा परिवार है। मैंने भगवान से मनोकामना जताई थी कि जब तक अयोध्या में रामलला भव्य मंदिर में नहीं विराजेंगे, तब तक मैं श्रीराम का नाम लिखती रहूंगी। मुझे जब भी समय मिलता, भगवान श्रीराम का नाम लिखने लगती हूं। दिनभर उन्हीं के नाम का जाप करती हूं। पिछले 5 साल से राम का नाम लिख रही हूं। भगवान का नाम लिखते-लिखते दर्जनों कॉपियां भर गई हैं। अब मेरे श्रीराम का भव्य मंदिर तैयार हो रहा है। मुझे खुशी है भगवान ने मेरी मनोकामना पूरी की।
हर दिन तीन से चार हजार शब्द लिखने का लक्ष्य
हर दिन सुबह 6 बजे उठती हूं। पूजा पाठ करने के बाद चाय-नाश्ता करती हूं। इसके बाद बाहर लगे सोफे पर बैठकर श्रीराम का नाम लिखने लगती हूं। तीन से चार हजार शब्द लिखने का लक्ष्य रहता है, जो दिनभर में पूरा हो जाता है। सोने के पहले भी दो से चार पेज राम नाम से भरती हूं।
अयोध्या भेजने की है इच्छा
मनोरमा श्रीवास्तव ने कहा, राम नाम से लिखी हुईं इन कॉपियों को अयोध्या भेजने की इच्छा है। बेटे ने कहा है कि रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होने के बाद इनको लेकर अयोध्या जाएंगे। उन्होंने कहा, राम का नाम लिखने से एक अलग ही सुकून मिलता है। मन को शांति मिलती है। अयोध्या में भव्य मंदिर के निर्माण से मेरी मां बहुत खुश हैं और वे जल्द ही रामलला के दर्शन करना चाहती हैं।