पं. शास्त्री ने कहा कि राम इस देश की अस्मिता और गौरव के पर्याय हैं। उनके समूचे जीवन चरित्र में कहीं भी कोई दोष नहीं है। यह निर्दोषता ही उन्हें पूजनीय और वंदनीय बना गई। हमारे पतन के लिए कोई और जिम्मेदार नहीं हो सकता। हमारा अज्ञान, भ्रम, भय, संशय ही हमारा नाश करता है। धरती पर कोई और हमारा अहित कर ही नहीं सकता। संशय से जड़ता आती है। अल्पज्ञता, अकर्मण्यता और भीतर का प्रमाद ही हमारे सबसे बड़े शत्रु हैं। हमारा अंतःकरण श्रद्धा संपन्न होगा तो हमारे अंदर श्रेष्ठ विचारों की ग्राह्यता होगी। भगवान श्रीराम प्रेम की मूर्ति और प्रेम के पर्याय हैं। शबरी, केवट और वनवासियों के बीच जाकर उन्होंने प्रेम ही बांटा है।