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इंदौर

महाशिवरात्रि : तपस्वी उड़ाकर ले जा रहे थे भगवान शिव का ये मंदिर, रास्ते में इसलिए करना पड़ा स्थापित

तपस्वी उड़ाकर ले जा रहे थे भगवान शिव का ये मंदिर, रास्ते में इसलिए करना पड़ा स्थापित

इंदौरMar 04, 2019 / 11:09 am

हुसैन अली

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महाशिवरात्रि : तपस्वी उड़ाकर ले जा रहे थे भगवान शिव का ये मंदिर, रास्ते में इसलिए करना पड़ा स्थापित

इंदौर. आज महाशिवरात्रि है। भोले के जयकारे गली-गली गूंज रहे हैं। मंदिरों में विशेष अनुष्ठान के साथ महादेव का अभिषेक किया जा रहा है। आपने शिव मंदिर तो काफी देखे होंगे, लेकिन आज हम आपको ऐसे शिव मंदिर के बारे में बता रहे हैं जो उडक़र बदनावर पहुंचा था। जी हां..1100 साल पुराने परमारकालीन बैजनाथ महादेव मंदिर को उड़निया मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। किवदंती है कि पूर्व काल में कोई तपस्वी अपने तपोबल से इस मंदिर को उड़ाकर ले जा रहे थे, लेकिन सूर्योदय का समय होते ही उन्हें यहां स्थापित करना पड़ा। उडिय़ा शैली में बने होने के कारण इसे उडिय़ा मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर के नाम से नगर पंचायत प्रतिवर्ष मेला आयोजित करती है। शिवरात्रि, श्रावण मास के अलावा भी बड़ी संख्या में यहां दर्शनार्थियों का जमावड़ा रहता है। बदनावर इंदौर से करीब 100 किमी दूर है।
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पूरी होती है मनोकामना

ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर में सभी की मनोकमनाएं पूरी होती है। शिवजी के अभिषेक और मनोवांछित फल के लिए भक्त उत्सुक रहते हैं। सावन में यहां श्रद्धालुओं का कतार लगी रहती है।
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बाहर से मनमोहक, अंदर से भी भव्य है मंदिर

यह मंदिर 1984 से पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है। 64 फीट ऊंचाई का यह मंदिर जितना बाहर मनमोहक है, उतना ही अंदर भी भव्य है। मंदिर के पत्थरों में अब क्षरण हो रहा है। जरा सा हाथ लगते ही पत्थर खिरने लगते हैं। प्रत्येक दो तीन सालों में विभाग द्वारा पत्थरों की केमिकल से धुलाई की जाती है, जिससे पत्थर में लगे कीड़े समाप्त होने से क्षरण होना बंद हो जाता है। गत 5 सालों से केमिकल से धुलाई नहीं होने के कारण क्षरण की प्रक्रिया तेज हो गई है। मंदिर के पिलर के पत्थर भी टूटने लगे हैं। वहीं इमारत पर नक्काशी की जाकर बनाई प्रतिमाएं भी खंडित होने लगी है।

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