लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की सार्वजनिक गणेश उत्सव मनाने की घोषणा के 20-25 साल बाद 1928 में इंदौर में गणेश उत्सव की परंपरा शुरू हुई। रामबाग गणेश उत्सव में होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रम उत्कृष्ट श्रेणी के हुआ करते थे। नाट्य भारती की प्रस्तुतियों के साथ प्रख्यात गायक बुलाए जाते थे। वैदिक आश्रम के बाहर गली में ओपन प्रस्तुतियां होती थीं।
75 साल का उत्सव भी हो चुका
गणेशोत्सव में एक दिन आनंद बाजार मनाने की शुरुआत यहीं से हुई। रामबाग कॉलोनी के लोग घरों से पकवान बनाकर लाते और उसके स्टॉल लगाते। उत्सव के दौरान रविवार को रंगोली बनाने के लिए महिलाओं में प्रतिस्पर्धा होती थी। 2003 में समिति ने वैदिक आश्रम गणेश उत्सव की प्लेटिनम जुबली मनाई। 10 दिन तक कार्यक्रम हुए। 1970 में उत्सव को फिल्मी गानों के विरोध में बंद कर दिया। गाने नहीं बजाए जाएंगे, इस वादे के साथ उत्सव 1973 में दोबारा शुरू हुआ।
आज भी तिलक पगड़ी वाले गणेशजी
1930 के दशक में रामबाग के वैदिक आश्रम में धूमधाम से गणेश उत्सव की शुरुआत हुई थी। उत्सव में लोकमान्य तिलक का ऐसा प्रभाव था कि आश्रम में विराजने वाले बप्पा को लोकमान्य पगड़ी पहनाई जाती थी, यह परंपरा आज भी जारी है। खरगोनकर परिवार को ही पगड़ी वाले गणपति की मूर्ति बनाने की जिम्मेदारी दी जाती थी, जिसे ठोस मिट्टी से तैयार किया जाता था। दो साल से आश्रम के नए भवन के निर्माण के कारण गणपति की स्थापना गणेश मंदिर में होती है, लेकिन उत्सव नहीं मनाया जाता।