करीब 22 हजार करोड़ रुपए की इंदौर-मनमाड़ रेलवे लाइन की सबसे ज्यादा अहमियत यह है कि इससे एमपी की व्यवसायिक राजधानी इंदौर से देश की व्यवसायिक राजधानी मुंबई बहुत करीब आ जाएगी। नई रेल लाइन बनने के बाद इन दोनों महानगरों के बीच की दूरी करीब 200 किमी कम हो जाएगी।
यह भी पढ़ें : एमपी को एक और सौगात, जल्द दौड़ेगी जयपुर-इंदौर वंदे भारत एक्सप्रेस, पहुंचा रैक इंदौर से मुंबई तक का रेल मार्ग घुमावदार है, ट्रेन घूमकर मुंबई पहुंचती है। अभी इंदौर से रतलाम और बड़ोदरा होते हुए मुंबई जाना पड़ता है। इंदौर मनमाड़ रेल लाइन का काम पूरा होने पर इंदौर से सीधे मुंबई जाया जा सकेगा। नए ट्रेक से इंदौर से धामनोद मनमाड़ होते मुंबई पहुंचा जा सकेगा। इस तरह इंदौर मनमाड़ नए ट्रेक से न सिर्फ मुंबई की दूरी कम होगी बल्कि दोनों महानगरों के बीच के सफर में खासा समय भी बचेगा।
इंदौर मनमाड़ रेलवे संघर्ष समिति के पदाधिकारी और विशेषज्ञ बताते हैं कि इंदौर मनमाड़ रेल परियोजना कुल 339 किमी की है। इसमें 30 किमी लंबी धुली-नरधाना रेल लाइन का निर्माण कार्य चल रहा है। परियोजना पूरी होने के बाद इंदौर-मुंबई की रेल मार्ग की दूरी करीब 200 किमी कम हो जाएगी।
इंदौर मनमाड़ रेल परियोजना से इंदौर मुंबई की दूरी करीब 750 किमी रह जाएगी। इसी तरह परियोजना से इंदौर-पुणे की रेल दूरी भी 200 किमी कम हो जाएगी। इस परियोजना की शुरुआती लागत 10 हजार करोड़ रुपए थी जोकि अब बढ़कर 22 हजार करोड़ रुपए हो गई है।
विशेषज्ञ बताते हैं कि इंदौर मनमाड़ रेल परियोजना का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि इससे देश को दक्षिण भारत और पुणे के लिए वैकल्पिक रेल मार्ग भी मिल जाएगी। नया ट्रेक इटारसी और भोपाल पर निर्भरता कम करेगा। इंदौर, पीथमपुर, रतलाम से मुंबई तक आवाजाही आसान होगी। एमपी से निर्यात में तेजी आएगी। माल, कार्गो, कंटेनरों के मुंबई जाने में बढ़ोत्तरी होगी।
ऐसे उलझा मामला
इंदौर मनमाड़ रेलवे परियोजना के लिए केंद्रीय रेल मंत्रालय और रेलवे बोर्ड ने रेलवे एंड पोर्ट कार्पोरेशन गठित किया था। परियोजना के लिए मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र की राज्य सरकारों के साथ जहाज रानी मंत्रालय व पोर्ट कार्पोरेशन को मिलकर आर्थिक सहयोग करना प्रस्तावित था। करीब सात साल पहले केंद्र सरकार और दोनों राज्य सरकारों के मध्य इस पर सहमति हो गई थी। इसके अंतर्गत दोनों राज्यों की सरकारों यानि मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र को परियोजना लागत में 15-15 प्रतिशत राशि देनी थी। जहाजरानी मंत्रालय के लिए भी 15 प्रतिशत राशि तय हुई। शेष 55 प्रतिशत राशि जवाहर पोर्ट द्वारा दिए जाने का प्रस्ताव था लेकिन बाद में उसने परियोजना से हाथ खींच लिए। इस कारण इंदौर-मनमाड़ नई रेलवे लाइन खटाई में पड़ गई थी।