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इंदौर

जिन इमली के पेड़ों की दीवानी है दुनिया, अब उन्हें काट रहा प्रशासन, जानें क्या है पूरा मामला

अपने खास स्वाद और औषधिय जड़ी-बूटियों वाले इन पेड़ों के माई-बाप यहां रहने वाले आदिवासी परिवार ही थे, क्योंकि उन्होंने ही इन पेड़ों को सहेजा और बड़ा किया, इनका संरक्षण किया। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी एक-दूसरे का सहारा बने ये पेड़ और आदिवासी अब बेहसहारा, बेआसरा हो चले हैं। कुछ जिम्मेदारों की मनमानी ने इन्हें जैसे अनाथ कर दिया है…यहां पढ़ें आखिर क्या है मामला?

इंदौरJun 30, 2023 / 06:17 pm

Sanjana Kumar

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इंदौर। शहर के धार जिले का मांडू दुर्लभ प्रजाति के खुरासानी इमली के पेड़ों के लिए देश-दुनिया में इनकी भारी डिमांड रहती है। ऐसे यहां करीब 70 पेड़ ही हैं। लेकिन दुर्लभ इमली का यह एक पेड़ कई आदिवासी परिवारों की रोजी-रोटी का सहारा है। अपने खास स्वाद और औषधिय जड़ी-बूटियों वाले इन पेड़ों के माई-बाप यहां रहने वाले आदिवासी परिवार ही थे, क्योंकि उन्होंने ही इन पेड़ों को सहेजा और बड़ा किया, इनका संरक्षण किया। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी एक-दूसरे का सहारा बने ये पेड़ और आदिवासी अब बेहसहारा, बेआसरा हो चले हैं। कुछ जिम्मेदारों की मनमानी ने इन्हें जैसे अनाथ कर दिया है…यहां पढ़ें आखिर क्या है मामला?

दरअसल मांडू में बेहद दुर्लभ प्रजाति के खुरासानी इमली के पेड़ हैं। अपने खास स्वाद के साथ ही ये औषधीय गुणों के लिए भी जाने जाते हैं। दुनियाभर में भारी डिमांड वाले इन पेड़ों को काटने की अनुमति प्रशासन ने हाल ही में हैदराबाद की एक कंपनी को दी है। अब इन्हें काटने का विरोध भी तेज होता जा रहा है। वहीं आदिवासियों का कहना है कि उन्होंने कई सालों तक इन पेड़ों को सहेजा और बड़ा किया। और जब ये पेड़ उनका घर-परिवार चलाने का सहारा बने, तो प्रशासनिक अधिकारियों ने एक कंपनी से मिलीभगत कर नियम विरुद्ध पेड़ों को कटवा दिया। अब इन पेड़ों को लाखों रुपए में बेचकर नामचीन अरबपतियों के घरों की शोभ बढ़ाएंगे।

आदिवासी नेता रेवतीरमण सिंह राजूखेड़ी कहती हैं कि खुरासानी इमली के पेड़ बेहद दुर्लभ प्रजाति के पेड़ हैं। जिला प्रशासन की अनुशंसा पर वन विभाग के अधिकारियों ने 11 खुरासानी इमली के पेड़ों को हैदराबाद स्थित ग्रीन किंगडम नामक एक प्राइवेट कंपनी के बोटैनिकल गार्डन में ट्रांसलोकैट कर दिया गया है। यह सारी प्रक्रिया नियम विरुद्ध तरीके से की गई है। इंदौर और आसपास के क्षेत्रों में यह बहुत कम संख्या में ही बचे हैं। एक पेड़ कई आदिवासियों का घर चलाता है। इससे बनने वाले इमली के उत्पाद बेहद पसंद किए जाते हैं। इसी वजह से इसकी बहुत अधिक डिमांड है। जिला प्रशासन के अधिकारियों द्वारा उक्त अनुमति यह जानते हुए दी गई है कि उन्हें इस प्रकार की अनुमति देने का कोई वैधानिक अधिकार ही नहीं है। वहीं इस बारे में कंपनी का कहना है कि हर पेड़ के लिए उसने प्रशासन के पास दस हजार रुपए से अधिक की राशि जमा करवाई है। ट्रक और अन्य बड़े वाहनों के माध्यम से वह इन्हें हैदराबाद ले जा रही है।

बायोडायवर्सिटी बोर्ड की अनुमति लेनी अनिवार्य थी
बायोलॉजिकल डायवर्सिटी अधिनियम 2002 के तहत किसी भी बायोलॉजिकल रिसोर्ट को व्यवसायिक उद्देश्य के लिए उपयोग लेने से पहले मध्य प्रदेश बायोडायवर्सिटी बोर्ड की अनुमति लेनी पड़ती है तथा उक्त बोर्ड के अलावा यह अनुमति कोई भी प्रशासनिक अधिकारी विधि अनुसार प्रदान नहीं कर सकता। इसके बावजूद धार जिला प्रशासन के तथा इंदौर वन विभाग के अधिकारियों द्वारा सरकारी ओहदे और रसूख का गलत इस्तेमाल कर अपने स्तर पर अवैधानिक स्वीकृति दे दी गई है। यह अनुमति तहसीलदार धर्मपुरी, तहसीलदार नालछा, अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक वन वृत्त इंदौर तथा वन मंडल अधिकारी धार द्वारा मनमाने ढंग से दी गई है।

कंपनी को भेजा नोटिस
युवा कांग्रेस विधि विभाग के राष्ट्रीय समन्वयक अभिभाषक जयेश गुरनानी ने मध्यप्रदेश के वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों तथा उक्त अवैधानिक कृत्य करने वाले धार जिले एवं वन विभाग के प्रशासनिक अधिकारियों को लीगल नोटिस दिया है। इसमें मांग की गई है कि हैदराबाद के बोटैनिकल गार्डन में भेजे गए खुरासानी इमली के पेड़ों को धार जिले में पुन: स्थापित किया जाए और ग्रीन किंगडम नामक कंपनी के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की जाए। प्रशासन पर यह भी आरोप लगाए गए हैं कि प्रदेश के प्राकृतिक सौंदर्य और पर्यावरण संरक्षण को नुकसान पहुंचाया। इस अवैध क्षरण से होने वाले दूरगामी दुष्परिणाम को नजरअंदाज किया। खुरासानी इमली को आदिवासियों के लिए आस्था, परंपरा और अर्थव्यवस्था का आधार है। इस पर चोट की।

संरक्षण का वादा भूले
आपको बता दें प्रवासी भारतीय सम्मेलन और जी-20 सम्मेलन में पर्यटकों के बीच इसकी ब्रांडिंग की गई और इन पेड़ों का महत्व बताया जाएगा। कार्यक्रमों में कहा गया था कि इनके संरक्षण का प्रयास किया जाएगा। अफगानिस्तान से लाए गए थे पेड़ इतिहास बताता है कि 15वीं शताब्दी में मांडू के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी को अफगानिस्तान के खुरासान के सुल्तान ने उपहार स्वरूप कुछ बोलने वाले तोते और खुरासानी इमली के पौधे भेंट किए थे। इसका वानस्पतिक नाम बायबाय है। अलाउद्दीन खिलजी ने पूरे साम्राज्य में खुरासानी इमली के पौधे लगाए थे, लेकिन सिर्फ मांडू और आसपास के क्षेत्रों में ही अनुकूल जलवायु मिलने से यह पनप सके। करीब एक हजार पेड़ो में से अब केवल 75 पेड़ ही बचे हैं। खुरासानी इमली का फल भी आकार में बड़ा होता है। यह स्वाद में बहुत लाजवाब होता है। मांडू आने वाले पर्यटक इसकी विशेष रूप से डिमांड करते हैं। यहां के अधिकांश आदिवासी परिवार इस फल का व्यापार करते हैं। इमली का इस्तेमाल पेट दर्द, पेचिश, कब्ज, हेल्मिन्थस संक्रमण जैसी पेट से जुड़ी समस्याओं से बचाव में किया जा सकता है। यही नहीं इसके अलावा इस इमली में लीवर, हार्ट को दुरुस्त रखने के गुण भी पाए जाते हैं।

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