भक्ति बिना ज्ञान और कर्मयोग से परिपूर्णता नहीं आ सकती
इंदौर. गीता को हम सब कर्मयोग का ही ग्रंथ और पर्याय मानते हैं लेकिन वास्तव में भगवान ने गीता के माध्यम से हम सबके लिए भक्ति मार्ग का विस्तार किया है। ज्ञान और कर्मयोग की भी चर्चा की गई है, लेकिन मुख्य आशय भक्ति का ही है। भगवान का प्रादुर्भाव भक्ति को प्रसिद्ध करने के लिए ही हुआ है। केवल ज्ञान और कर्मयोग से ही परिपूर्णता नहीं आ सकती, भक्ति के बिना इन दोनों की सार्थकता नहीं होती। सीधे शब्दों में कहें तो भक्ति से अलंकृत ज्ञान ही शोभायमान होता है। भक्ति का आश्रय करने वालों को भगवान जीवनपथ में यहां-वहां गिरने-पडऩे से बचाते हैं। ये विचार सूरत से पधारे जगदगुरू वल्लभाचार्य गोस्वामी वल्लभराय महाराज ने सोमवार को गीता भवन में चल रहे अभा गीता जयंती महोत्सव की धर्मसभा में अंतर्राष्ट्रीय रामस्नेही संप्रदाय के आचार्य जगदगुरू स्वामी रामदयाल महाराज की अध्यक्षता में व्यक्त किए। सुबह के सत्र में इलाहाबाद से आए प. जयशंकर शास्त्री, गोधरा से आई साध्वी परमानंदा सरस्वती, हरिद्वार से आए स्वामी गोपालानंद सरस्वती, उज्जैन से आए स्वामी वीतरागानंद ने भी गीता, मानस एवं अन्य ज्वलंत विषयों पर अपने प्रेरक विचार रखे। दोपहर की सत्संग सभा में डाकोर के वेदांताचार्य स्वामी देवकीनंदन दास, उज्जैन के स्वामी असंगानंद, अरविंद सोसायटी उज्जैन के चेयरमैन पं. विभाष उपाध्याय, गोधरा की साध्वी परमानंदा सरस्वती, श्री श्रीविद्याधाम के महामंडलेश्वर स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती, चित्रकूट के मानस मर्मज्ञ आचार्य महेंद्र मिश्र मानस मणि, राधा भाव जागृति मिशन नई दिल्ली के संस्थापक स्वामी देवमित्रानंद गिरि के भी प्रवचन हुए। संतों का स्वागत गोपालदास मित्तल, राम ऐरन, रामविलास राठी, महेशचंद्र शास्त्री, सोमनाथ कोहली, प्रेमचंद गोयल, रामचंद्र राजवानी, आदि ने किया।
आज के कार्यक्रम: महोत्सव में मंगलवार को मोक्षदा एकादशी पर गीता जयंती का मुख्य महोत्सव बनाया जाएगा। प्रात: 6.30 बजे भगवान शालिग्राम के विग्रह पर आचार्य विद्वानों द्वारा विष्णु सहस्त्रनाम के पाठ से सहस्त्रार्चन होगा। प्रात: 8 बजे से देशभर से आए संत-विद्वानों के सान्निध्य में गीता के 18 अध्यायों का सामूहिक पाठ प्रारंभ होगा। इसके बाद शाम तक विभिन्न संतों के प्रवर्चन होंगें। बुधवार को वृंदावन के रासलीला मंडली के कलाकार भी सांय 7 बजे से अपनी प्रस्तुतियां देंगे।