राजनीति का ऊंट कब किस करवट बैठ जाए, कहा नहीं जा सकता। दो साल पहले सांवेर सहित प्रदेश की 22 विधानसभाओं में उपचुनाव हुए थे, जिसमें भाजपा ने जोरदार प्रदर्शन किया था। ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कांग्रेस से आए कुछ लोगों को छोड़कर अधिकतर प्रत्याशियों ने जीत दर्ज कराई। सबसे बंपर जीत सांवेर से तुलसीराम सिलावट की हुई थी, जिन्होंने अपने निकटतम् प्रतिद्वंद्वी प्रेमचंद गुड्डू को 54 हजार से अधिक वोटों से हराया था। ये परिणाम सांवेर भाजपा के एक-एक कार्यकर्ता की मेहनत का नतीजा था।
ये मिला जवाब- उनको हम पर भरोसा नहीं- भाजपा छोडऩे वालों का कहना है कि वे वर्षों से जिनसे संघर्ष कर रहे थे, वे भाजपा में आ गए। हमने स्वागत किया। चुनाव में तन, मन और धन से सहयोग भी किया लेकिन कुछ काम बताओ तो होते नहीं हैं। इशारों-इशारों में कहना है कि उनको हम पर भरोसा नहीं है और वे आज भी अपने पुराने लोगों पर ही भरोसा करके काम करते हैं। ऐसे में हमारी पार्टी में क्या जरूरत। कोई भी हमारी पीड़ा समझना तो दूर, सुनने के लिए भी तैयार नहीं तो क्या मतलब है काम करने से? कई लोगों ने ऐसा ही बयान दिया।
किसी भी दिन फटेगा ज्वालामुखी
सांवेर में कई भाजपाइयों के अंदर विरोध का ज्वालामुखी अंदर ही अंदर सुलग रहा है। किसी भी दिन वह फट सकता है। छुटपुट घटनाएं निकलकर सामने आ रही हैं, जिसमें पुराने भाजपाई बाय-बाय कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में मंत्री सिलावट को संभालना भारी पड़ जाएगा। एक बात और, भाजपाइयों को ज्यादा तकलीफ सिलावट के साथ में रहने वालों से भी है, जो उनके साथ पार्टी में आए और आज पूरा काम संभाल रहे हैं।
गुलावट से हुई थी शुरुआत
दो साल पहले सिलावट को पलकों पर बैठाने वाले कई जमीनी भाजपाई इन दिनों नाराज चल रहे हैं। इसके चलते धीरे-धीरे विधानसभा के कार्यकर्ता भाजपा छोड़कर कांग्रेस का दामन थाम रहे हैं। इसकी शुरुआत गुलावट से हुई थी, जहां पर 50 कार्यकर्ताओं ने कांग्रेस की सदस्यता ले ली। ये कारवां वहीं नहीं थमा। बाद में बदरखा गांव के 30 नेताओं व कार्यकर्ताओं ने पार्टी छोड़कर कांग्रेस का दामन थाम लिया। बात यहां तक भी ठीक थी, लेकिन दो दिन पहले भाजपा के जिला मंत्री राजेंद्र सिंह ने भी कांग्रेस जॉइन कर ली। उनके जाने की खबर के बाद भाजपा हलकों में हलचल तेज हो गई। कुछ नेताओं ने पार्टी छोडऩे वालों से संपर्क करने का प्रयास किया तो टका सा जवाब मिल गया।