संस्कारों से ही दया, करुणा, प्रेम, परोपकार आदि से स्वयं का जीवन सजाने वाला व्यक्ति महान बन जाता है। जबकि जीवन में यदि संस्कार और मर्यादा नहीं है तो व्यक्ति का पतन निश्चित है। परिवार और माता-पिता के संस्कार बच्चों को प्रभावित करते हैं। परिवार में नियम की तरह पीढ़ी-दर-पीढ़ी जो संस्कार बच्चों तक पहुंचते हैं उसका गहरा प्रभाव उनके व्यक्तित्व पर पड़ता है। बड़ों के पैर छूना, सिर झुकाकर प्रणाम, प्रात: जल्दी उठना, गरीबों की मदद करना, घर के बुजुर्गो की सेवा करना आदि संस्कार हमें अपने परिवार से ही मिलते हैं। बच्चों में नैतिक शिक्षा देने का काम हो।
कथावाचक पुष्करदास ने कहा, आज के इस बदलते परिवेश में समय निकालकर बच्चों को संस्कारवान बनाना यज्ञ करने के समान है। आदर्श समाज की स्थापना संस्कार से ही शुरू हो सकती है और संस्कार जन्म से ही डाला जा सकता है। अच्छे संस्कार जीवन को उचित दिशा देते हैं। बाल्यावस्था में अनुशासन के संस्कार का बीजारोपण होना आवश्यक है। अगर बचपन में बच्चों को अच्छे संस्कार दिए गए तो वह पूरे जीवन उसके साथ रहते हैं और चाहकर भी गलत काम नहीं कर पाता।
खिलौने और किताबें व्यवस्थित ढंग से निश्चित स्थान पर रखना सरीखे संस्कार बच्चों को व्यवस्थित और स्वावलंबी बनाते हैं। माता-पिता को अपने कार्य व्यवहार से ऐसे संस्कार भी बच्चों में डालना चाहिए, जिससे वह समय के महत्व को समझे। बच्चों में अच्छे संस्कार विकसित करना शिक्षा का आवश्यक अंग है। अच्छे मन का संवर्धन शिक्षा का उद्देश्य होना चाहिए। यह तभी संभव है जब मां-पिता और शिक्षक के कार्य व्यवहार में वे संस्कार दिखें।
श्री राधे गोविंद भज मन श्रीराधे…समेत अन्य मनभावन भजनों की प्रस्तुति पर श्रोता झूमने पर मजबूर हो गए। कथा के दौरान बीच-बीच में भजनों की प्रस्तुति पर श्रोतागण भी भाव-विभोर होकर नाचने लगे। कथा के अंतिम दिन कथा सुनने के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी। कथा स्थल भगवान के जयकारों से गुंजायमान हो गया।
श्री रामदेव मरुधर सेवा संघ हुब्बल्ली के केसाराम चौधरी ने बताया कि बुधवार को भक्तों की ओर से प्रभावना रखी गई एवं आरती की गई। संघ के अध्यक्ष उदाराम प्रजापत एवं सचिव मालाराम देवासी ने बताया कि बुधवार को कथा की पूर्णाहूति हुई। शहर के विभिन्न इलाकों से प्रवासी कथा में शामिल हुए।