हुबली

खान-पान शुद्ध होगा तो कई समस्याओं का समाधान स्वत: हो जाएगा, हम पुरातन संस्कृति से जुड़ें, पशु-पक्षियों की सेवा जरूरी

हरिकृपा आश्रम बिकरलाई (पाली) साध्वी संतोष बाइसा की राजस्थान पत्रिका के साथ विशेष बातचीत

हुबलीAug 12, 2024 / 08:18 pm

ASHOK SINGH RAJPUROHIT

साध्वी संतोष बाइसा, हरिकृपा आश्रम बिकरलाई (पाली)

हमारा खान-पान शुद्ध होना चाहिए। यदि खान-पान शुद्ध होगा तो अनेक समस्याओं का समाधान स्वत: ही हो जाएगा। बाहरी भोजन अच्छा नहीं है। यह हमारे स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक ही है। मौजूदा दौर में हम छोटी-छोटी बातों को भूलते जा रहे हैं। हम अपनी पुरातन संस्कृति से जुड़े रहें। मूक पशु-पक्षियों की सेवा जरूरी है। जब भी समय मिलें हम गौसेवा कर सकते हैं। चिडिय़ों-कबूतरों को दाना डालने को भी जीवन में शामिल करें। बच्चों एवं युवा पीढ़ी को भी इस तरह के काम से जोड़ें। सूर्य को जल चढ़ाएं। हरिकृपा आश्रम बिकरलाई (पाली) से कर्नाटक के हुब्बल्ली में पधारीं साध्वी संतोष बाइसा ने यहां राजस्थान पत्रिका के साथ विशेष बातचीत में धर्म-ध्यान के साथ ही संस्कृति एवं संस्कारों पर खुलकर बात की। प्रस्तुत हैं उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंश:
सवाल: हम पुरातन संस्कृति से किस तरह से जुड़े रह सकते हैं?
साध्वी: पहले के जमाने में हम पशु-पक्षियों की सेवा पर अधिक ध्यान देते थे। हरिकृपा आश्रम बिकरलाई में करीब एक हजार से अधिक तोते हैं। इनके लिए पचास पिंजरे बनाए गए हैं। इनमें दाना-पानी डाला जाता है। तोते इसमें खुश है। इसी तरह हजारों कबूतरों के लिए रोजाना दाना-पानी की व्यवस्था की जाती है। इसके लिए बकायदा चबूतरा बनाया गया है जहां रोज बाजरा, गेहूं, मक्की एवं ज्वार डाली जाती है। कौओं को नमकीन खिलाया जाता है। शाम को चिडिय़ाएं भी आश्रम आकर दाना चुगती है। चिडिय़ों के लिए अलग से माटी का घर बनाया हुआ है। आश्रम परिसर में ही चीटिंयों के लिए दाने (कीड़ीनगरा) की व्यवस्था रोजाना की जाती है। आश्रम में ही गायों की सेवा भी की जा रही है।
सवाल: हमारी शिक्षा प्रणाली कैसी होनी चाहिए?
साध्वी: हमारी शिक्षा पद्धति में संस्कारों का समावेश भी किया जाना चाहिए। शिक्षा के साथ नैतिक ज्ञान की जरूरत महसूस की जा रही है लेकिन नैतिकता का यह पाठ बच्चों को स्कूल से पहले अपने घर पर सीखना होता है। इसमें बच्चे के माता-पिता की भूमिका अहम होती है। ऐसे में माता-पिता का यह कत्र्तव्य बनता है कि वे अपने बच्चों को संस्कारित करने की दिशा में विशेष ध्यान दें।
सवाल: मौजूदा दौर में प्रदूषण बढ़ रहा है। इस पर अंकुश कैसे लगा सकते हैं?
साध्वी: पौधरोपण पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए। हमने भक्तों के सहयोग से गुरुकृपा आश्रम बिकरलाई में दो सौ से अधिक पौधे लगाए हैं। इनमें कल्पवृक्ष, कदम, पीपल, गुलर, आंवला, आम, चीकू समेत अन्य किस्मों के पौधे लगाए गए हैं। इससे वातावरण भी शुद्ध रहता है।
सवाल: मोबाइल हमारे लिए कितना फायदेमन्द या नुकसानदेय साबित हो रहा है?
साध्वी: मोबाइल का यदि सकारात्मक उपयोग किया जाएं तो यह हमारे लिए फायदेमंद है लेकिन मौजूदा दौर में मोबाइल ने परिवार को छीन लिया है। हमारे संस्कार लुप्त होते जा रहे हैं। घर-परिवार को समय कम दे पा रहे हैं। मोबाइल के कारण प्रेम-भाव में कमी आई है।
सवाल: गुरुकृपा आश्रम के लिए भविष्य की क्या योजनाएं हैं?
साध्वी: गुरुकृपा आश्रम में वर्ष 2025 में राधे-कृष्ण भगवान के मंदिर की प्रतिष्ठा करवाई जाएगी। मंदिर का निर्माण लगभग पूरा हो गया है। मंदिर में राधे-कृष्ण की सफेद संगमरमर की प्रतिमा स्थापित की जाएगी। इसके साथ ही मंदिर में अन्य देवताओं की प्रतिमाएं भी होंगी। आश्रम में भक्तों के लिए आवास एवं भोजन की व्यवस्था की गई है। करीब चार बीघा इलाके में फैले आश्रम के कुछ हिस्से में गायों की सेवा के लिए खेती भी की जा रही है।
सवाल: मौजूदा दौर में क्या बच्चों को संस्कार कम मिल रहे हैं, इसके लिए कौन जिम्मेदार है?
साध्वी: बच्चों पर यदि बचपन से ही ध्यान दिया जाएं तो बच्चे संस्कारित अधिक होंगे। बच्चों को बचपन में लाड-प्यार करें लेकिन बाद में उनके खान-पान समेत अन्य अच्छी आदतें विकसित करने की तरफ ध्यान अधिक हो। किशोरवय में बच्चों के साथ दोस्ताना व्यवहार जरूरी है। इससे बच्चे माता-पिता से कोई बात छिपाएंगे नहीं। बच्चों को संस्कार देने का काम सबसे पहले माता-पिता का है। यदि बचपन में ही बच्चों को अच्छे संस्कार दिए जाएं तो उसका असर समूचे जीवन में दिखाई देता है। बच्चे बचपन में बताई बातें जल्दी सीखते हैं। मौजूदा समय में शिक्षा के साथ संस्कार भी जरूरी है। बच्चे जैसा घर-परिवार में देखते हैं वैसे ही वे सीखते हैं।
सवाल: मौजूदा समय में परिवार टूट रहे हैं, इसकी वजह क्या है?
साध्वी: जीवन में संस्कार जरूरी है। यदि संस्कारित व्यक्ति या परिवार होगा तो आधी से अधिक समस्याओं का समाधान स्वत: ही हो जाएगा। आज जिस तरह से संयुक्त परिवार टूट रहे हैं और लगातार एकल परिवारों का चलन बढ़ रहा है। इसमें कहीं न कहीं संस्कारों की कमी है। संस्कार हमें जोडऩे का काम करते हैं। हमारी सनातन संस्कृति हमें संस्कारों की सीख देने की रही है।
सवाल: संयुक्त परिवार व एकल परिवार में से कौनसा अधिक अच्छा है?
साध्वी: संयुक्त परिवार के फायदे अनेक है। इससे संस्कार मिलते हैं। एक-दूसरे पर अंकुश रहता है। परिवार का साथ अधिक मिलता है। बड़ों का ज्ञान एवं अनुभव सीखने को अधिक मिलता है।
सवाल: युवा पीढ़ी को धर्म-ध्यान से कैसे जोड़ा जा सकता है?
साध्वी: धर्म के प्रति लोगों की रूचि बढ़ी जरूर है। युवाओं में सेवा-भावना भी तेज हुई है। हम कम सेे कम विशेष अवसरों पर सेवा-कार्यों में अपना योगदान दे सकते हैं। यथासंभव हमें जरूरतमन्द लोगों की सेवा में आगे आना चाहिए।

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