बल्लारी
श्री पाश्र्वनाथ जैन श्वेताम्बर मूर्ती पूजक संघ में विराजित आचार्य महेन्द्र सागर सूरीश्वर ने प्रवचन में कहा कि किसीको प्रश्न हो कि हमें अमुक देवी की कृपा तथा उनके दर्शन व भक्ति करने से ही सुख प्राप्त होता दिखाई देता है , तो उनके लिए उत्तर यह है कि वह सुख उनके पूर्व पुण्य का ही फल है। यदि उनके पाप का उदय हो तो कोई भी देव देवी उसे पुण्य में बदले के लिए शक्तिमान नहीं हैं। पुण्य का फल मांगना, वह निदान शल्यरूप होने से , बहुत अधिक पुण्य का अल्प फल मिलता है और वह सुख भोगते समय नियम से बहुत ही पाप बंधते हैं, जोकि भविष्य के दुखों के कारण बनते हैं। इसलिए मांगों या न मांगों , आपको आपके पूर्व पुण्य – पाप का फल अवश्य मिलता है। इससे एक बात निश्चित है कि अपने को जो कुछ भी दु:ख आता है उसमें दोष अपने पूर्व पापों का ही होता है अन्य किसी का भी नहीं, जो अन्य को दु:ख देते ज्ञात होते हैं वो तो मात्र निमित्त रूप ही हैं। उसमें उनका कुछ भी दोष नहीं है। गलत राह पर चलकर पापी मनुष्य ने क्या क्या पाया यह देखने के बजाय क्या क्या खोया यह सोचेंगे तो आपकी आंखें खुल जाएगी।