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World AIDS Day: इस महिला ने भारत में ढूंढा था HIV का पहला मामला, सैंपल्स को सुरक्षित रखने के लिए घर के फ्रिज का किया था इस्तेमाल

World AIDS Day 2020: भारत में एड्स के मामले का पता लगाने वाली महिला रिसर्च का नाम सेलप्पन निर्मला है
लोगों को एड्स जैसी खतरनाक बीमारी के प्रति जागरूक करने के लिए 1 दिसंबर को विश्व एड्स दिवस मनाया जाता है

Dec 01, 2020 / 05:03 pm

Soma Roy

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World AIDS Day 2020

नई दिल्ली। एड्स (AIDS) को दुनिया की सबसे खतरनाक बीमारी में से एक माना जाता है। क्योंकि इसका अभी तक इलाज नहीं मिल सका है। इस लाइलाज बीमारी के प्रति लोगों को जागरूक करने और इसके चलते जान गंवाने वालों के प्रति शोक प्रकट करने के लिए हर साल 1 दिसंबर को विश्व एड्स दिवस मनाया जाता है। एड्स का पूरा नाम ‘एक्वायर्ड इम्यूलनो डेफिसिएंशी सिंड्रोम’ (acquired immune deficiency syndrome) है। यह एक ऐसी खतरनाक बीमारी है जो HIV (Human immunodeficiency virus) नामक विषाणु से फैलती है। एड्स को पश्चिमी देश से आई बीमारी बताया जाता है। मगर भारत में इसके पहले केस को ढूंढने का श्रेय एक महिला चिकित्सक को जाता है। जिनका नाम सेलप्पन निर्मला (Sellappan Nirmala) है।
चेन्नई के मेडिकल कॉलेज में माइक्रोबायलॉजी की स्टूडेंट रहीं निर्मला को रिसर्च के लिए उस वक्त उनकी प्रोफेसर ने HIV का टॉपिक दिया था। उस वक्त वह 32 साल की थीं। चूंकि एड्स एक नई बीमारी थी इसलिए उन्हें खुद इसके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी। मगर अपने काम को गंभीरता से लेते हुए वह रिसर्च में जुट गईं। उन्होंने सबसे पहले संवेदनशील इलाके के लोगों का ब्लड सैंपल इकट्ठा करने का मन बनाया।
सेक्स वकर्स को समझाना था चुनौती
निर्मला को सबसे पहले सेक्स वकर्स का ब्लड सैंपल इकट्ठा करना था। क्योंकि उन्हें इस बीमारी का सबसे संवेदनशील मरीज माना जाता है, लेकिन ऐसे लोगों तक कैसे पहुंचे और उन्हें ब्लड सैंपल देने के लिए कैसे राजी करें ये उनके लिए बड़ी चुनौती थी। बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक सैंपल जुटाने के लिए निर्मला सबसे पहले मद्रास जनरल हॉस्पिटल पहुंचीं। यहां इलाज के लिए सेक्स वकर्स से उन्होंने बात की और उनका ठिकाना पूछा। वहां जाकर उन्होंने करीब 80 लोगों के ब्लड सैंपल लिए। हालांकि उन्होंने सैंपल लेने का कारण नहीं बताया।
सैंपल्स को सुरक्षित रखने के लिए लगाया जुगाड़
निर्मला अपने काम को लेकर काफी सीरियस थीं। इसमें उनके पति वीरप्पन रामामूर्ति ने भी काफी साथ दिया। एचआईवी की पुष्टि के लिए लोगों से लिए गए ब्लड सैंपल्स को टेस्टिंग के लिए भेजना था। चूंकि उस दौरान टेस्टिंग सेंटर काफी दूर थे इसलिए उन्हें सैंपल्स को सुरिक्षत रखना था। उस वक्त कोई ऐसी फैसिलिटी भी नहीं था जहां इन्हें ठीक से रखा जा सके इसलिए उन्होंने सैम्पल्स को घर के फ्रिज में स्टोर कर दिया था। बाद में निर्मला ने इसे अपनी प्रोफेसर सोलोमन के साथ सैंपल्स को चेन्नई से 200 किमी दूर वेल्लोर के क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज भेजा था।
ऐसे हुई एचआईवी की पुष्टि
फरवरी, 1986 में निर्मला और उनके पति ने सैम्पल्स को एक आइसबॉक्स में रखा और रातभर ट्रेन का सफर करके काटापाड़ी पहुंचे। यहां टेस्टिंग का काम शुरू किया गया। इस काम में उनकी मदद वॉयरोलॉजी डिपार्टमेंट के डायरेक्टर जैकब टी जॉन कर रहे थे। सैंपल्स के पीले पड़ जाने पर निर्मला चेन्नई लौंटी और उन्होंने दोबारा उन 6 सेक्स वकर्स के ब्लड सैंपल लिए जिनकी उन्होंने जांच करवाई थी। इन सैंपल्स की टेस्टिंग के लिए वो अमेरिका गईं। यहां सभी रिपोर्ट पॉजिटिव आईं। निर्मला ने इसकी रिपोर्ट भारत सरकार को भेजी। मई में स्वास्थ्य मंत्री ने इस बुरी खबर की घोषणा विधानसभा में की थी।

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