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तेल का खेल: 32.61 रुपये का पेट्रोल ऐसे बिकता है 71.71 रुपये में, सरकार की होती है खूब कमाई

32.61 रुपये का पेट्रोल ऐसे बिकता है 71.71 रुपये में
नवंबर 2014 से जनवरी 2016 के बीच केंद्र सरकार ने 9 बार बढाई एक्साइज ड्यूटी

Mar 12, 2020 / 10:06 pm

Vivhav Shukla

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नई दिल्ली: कोरोना वायरस (coronavirus) ने पूरी दुनिया में तहलका मचा रखा है। इस वायरस के चलते हर तरफ हाहाकार मचा मचा हुआ है। कोरोना के चलते पूरी दुनिया में कच्चे तेल (crude oil) के दामों में गिरावट देखने को मिली है। इसके साथ ही सऊदी अरब और रूस के बीच हो रहे प्राइस वॉर ने भी क्रूड ऑयल (crude oil) की कीमतों पर खासा प्रहार किया है। इसके चलते पेट्रोल और डीजल के दामों पर भी असर पड़ा है।
मेट्रो सिटी में शुमार दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और कोलकाता में भी पेट्रोल-डीजल के दामों में तकरीबन 3 रुपये की कमी आई है।देश की राजधानी दिल्ली में डीजल के दामों में 2.33 रुपये तो पेट्रोल के दाम में 2.69 रुपये की कटौती की गई है। इसके बाद दिल्ली में पेट्रोल 70.29 रुपये तो डीजल 63.01 रुपये प्रति लीटर मिल रहा है। लेकिन ये गिरावट कच्चे तेल की तुलना में बहुत कम है। आज हम आपको इससे पिछे की वजह बताएंगे ।
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30 साल के न्यूनतम स्तर पर कच्चे तेल के दाम

दरअसल, सऊदी अरब ने पिछले सप्ताह रूस के साथ एक प्राइस वॉर शुरू कर दिया। सप्ताह सऊदी अरब ने कच्चे तेल की कीमत में कटौती करते हुए 30 साल के न्यूनतम स्तर पर कर दिया।सऊदी अरब में 6 मार्च को क्रूड ऑयल की किमत 52 डॉलर प्रति बैरल थी लेकिन 8 मार्च को इसकी किमत 31.49 डॉलर प्रति बैरल हो गई ।हालांकि 11 मार्च को, कीमत 36.4 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई थी। लेकिन ये भी बहुत कम है। सऊदी अरब के तेल के दाम घटाने की सबसे बड़ी वजह अमेरिका की शेल ऑयल इंडस्ट्री को तबाह करना है । इसके साथ ही सउदी अरब रूस के तेल उद्योग को भी बर्बाद करना चाहता है। जिसके चलते उसने कच्चे तेल की कीमत 52 डॉलर प्रति बैरल से घटाकर 31.49 डॉलर प्रति बैरल कर दिया है। वहीं अमेरिकी शेल ऑयल अपनी कीमत को 50 डॉलर प्रति बैरल से थोड़ा भी कम करता है तो वो बर्बाद हो जाएगा।
अब देखने वाली बात ये कि आखिर सऊदी अरब कब तक तेल को दाम को कम करके रोक सकता है। क्योंकि वहां कि सरकार का ज्यादातर खर्च उच्च तेल की कीमतों पर अत्यधिक निर्भर है। हालांकि सऊदी अरब बहुत ही कम दरों पर तेल का उत्पादन करता है लेकिन अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के आकलन के मुताबिक, सऊदी अरब सरकार को अपने खर्चे को पूरा करने के लिए तेल को 83.6 डॉलर प्रति बैरल पर बेचना होगा। ऐसे में ज्यादा दिन तक तेल के दाम को गिरा के रख पाना संभव नहीं होगा।

रूस-सऊदी अरब की लड़ाई में भारत को होगा फायदा

रूस और सऊदी अरब की इस तेल की दाम को लेकर हो रही लड़ाई में भारत का फायदा होना तय है क्योंकि भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कच्चे तेल का उपभोक्ता है और 85% के करीब तेल का आयात करता है।तो तेल की कीमतों में हो रही किसी भी तरह की गिरावट से भारत के लिए फायदेमंद है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये कि क्या भारतीय कंज्यूमरों को इसका फायदा होगा? तो इसका जवाब है नाम मात्र का। ऐसा इसलिए क्योंकि जब भी तेल के दाम में गिरावट आएगी केंद्र और राज्य सरकारें एक्साइज ड्यूटी और वैट बढ़ाकर अतिरिक्त राजस्व जुटाने में लग जाएगी। ऐसे में आम लोगों के लिए पेट्रोल, डीजल की कीमत में बड़ी कटौती होने का सवाल ही नहीं है।

32.61 रुपये का पेट्रोल ऐसे बिकता है 71.71 रुपये में

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सरकारें भरती हैं अपना खजाना

तेल का खेल समझने के लिए आपको पिछले आंकड़ों पर नजर डालना पड़ेगा। साल 2014 से 2016 के बीच भी कच्चे तेल के दाम तेजी से गिर रहे थे लेकिन इसका आम लोगों को कोई फायदा नहीं हुआ। जब की सरकारों ने ट्रोल-डीजल के नाम पर टैक्स वसूल कर अपना खजाना भर लिया। सरकारों को इस लूट को साधारण भाषा में समझाएं तो मान लिजिए आपने एक लीटर पेट्रोल खरीदा। तो एक लीटर पेट्रोल की कीमत में करीब आधा पैसा टैक्स के रूप में सरकारों के पास चला जाता है। इसमें केंद्र का 19.98 रुपये प्रति लीटर एक्साइज ड्यूटी के रूप में तो डीजल पर यह कमाई 15.83 रुपये प्रति लीटर है। इसके बाद राज्य सरकार वैट के नाम पर पैसे लेती है। हर राज्य का अपना वैट प्रतिशत होता है। ये अलग-अलग राज्यों में 6% से 39% तक है।

नवंबर 2014 से जनवरी 2016 के बीच केंद्र सरकार ने 9 बार बढाई एक्साइज ड्यूटी

बता दें साल नवंबर 2014 से जनवरी 2016 के बीच केंद्र सरकार ने 9 बार एक्साइज ड्यूटी बढ़ाया जबकी सिर्फ एक बार ही राहत दी। ऐसा करके केंद्र सरकार ने तेल पर टैक्स के जरिए 10 लाख करोड़ खजाने में जमा कर लिए। राज्य सरकारें भी इस दौरान खूब मनमनी की और अपने खजाने भर लिए। कच्चे तेल के दाम में आई गिरावट का फायदा पेट्रोल-डीजल के उपभोक्ताओं को ना मिलनी की एक वजह डॉलर के आगे रूपए की गिरावट भी है।क्यों की भारतीय तेल कंपनियां तेल को डॉलर में खरिदती है।यानी तेल की कीमतों में गिरावट का उन्हें उतना लाभ नहीं मिलता है, जितना उन्हें मिलना चाहिए।

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