वन विभाग के अधिकारियों के मुताबिक, इस मासांहारी पौधे को स्थानीय और सामान्य भाषा में ब्लैडरवॉर्ट्स कहते हैं। खास बात यह है कि, यह पौधा सिर्फ उत्तराखंड ही नहीं, बल्कि पूरे पश्चिमी हिमालय क्षेत्र में यह पहली बार देखने को मिला है।
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ये है ‘ब्लैडरवॉर्ट्स’ की खुराक
आमतौर पर पौधे पानी, हवा और धूप से अपना जीवन यापन करते हैं। कुछ पौधों को खाद भी दी जाती है, लेकिन ब्लैडरवॉर्ट्स की खुराक इन सबसे अलग है। ये जीने के लिए दूसरे जीव खाता है। वन विभाग के अधिकारियों की मानें तो यह पौधा मच्छरों और कई अन्य प्रकार के छोटे कीड़ों को खा जाता है।
इसकी शारीरिक सरंचना अन्य पौधों से अलग होती है। ये प्रोटोजोआ, कीड़े, लार्वा, मच्छर यहां तक नए टैडपोल्स (मेंढक के बच्चे) को खा जाता है।
आमतौर पर यह ऐसी जगहों पर उगता है, जहां पर मिट्टी की उर्वरक क्षमता कम होती है। इसलिए यह कीड़े-मकौड़े खाता है।
इस पौधे का सबसे बड़ा फायदा
इस पौधे के मेडिसिनल फायदे बहुत हैं। मांसाहारी पौधों की डिमांड मेडिकल फील्ड में लगातार बढ़ती जा रही है।
दरअसल ये पौधा वैक्यूम क्रिएट करके निगेटिव प्रेशर पैदा कर देता है। ऐसे में इसके आस-पास के इस पर बैठे कीड़ें इसके अंदर फंसकर खत्म हो जाते हैं।
अट्रीकुलेरिया फर्सेलाटा या फिर ब्लैडरवॉर्ट्स गीली मिट्टी और साफ पानी के आसपास मिलता है। उत्तराखंड के वन विभाग की ये खोज ‘द जर्नल ऑफ जापानीज बॉटनी’ भी प्रकाशित हुई है।
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