उत्तर – सांस न ले पाने की स्थिति में ट्रेकियोस्टॉमी से कृत्रिम सांस देते हैं। यह इलाज नहीं बल्कि इसका एक हिस्सा है। ५-१५ मिनट की सर्जिकल प्रक्रिया में गर्दन में सांस की नली (दूसरी-तीसरी ट्रेकियल रिंग के बीच) को सुन्न कर छोटा छेद कर उसमें ट्रेकियोस्टॉमी ट्यूब डालते हैं। इसे ऑक्सीजन से जोडक़र रोगी को कृत्रिम सांस देते हैं। मशीन से मॉनिटर कर तय होता है कि सांस कब-कितनी देनी है। रोग के इलाज पर निर्भर होता है कि इसे कितने दिन देना है। इलाज पूरा होने पर ट्यूब हटाकर गले के सर्जरी वाले भाग पर टांके लगा देते हैं।
उत्तर – ट्रेकियोस्टॉमी स्थिति के अनुसार ऑपरेशन थिएटर के अलावा ऑन द स्पॉट भी दिया जाता है।
पहला – गले में एलर्जी से सांस लेने में तकलीफ, जन्मजात सांस नली में विकृति, फेफड़ों से जुड़ा गंभीर रोग (संक्रमण, पानी भरना), कोमा, सांसनली में कैंसर (वोकल कॉर्ड), खर्राटे (स्लीप एप्निया), गर्दन-मुंह से जुड़ी इंजरी, वोकल कॉर्ड पैरालिसिस या सांस नली में ब्लॉकेज आदि।
उत्तर – ट्रेकियोस्टॉमी से पहले मरीज का ब्लड टैस्ट होता है ताकि रक्त से जुड़े डिसऑर्डर का पता लग सके। जैसे खून का थक्का न जमने की समस्या होने पर मरीज को प्लेटलेट चढ़ाए जाते हैं व विटामिन-के, के इंजेक्शन दिए जाते हैं। इसके बाद इलाज करते हैं। कृत्रिम सांस देने के दौरान कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है जैसे-