शहीद सुखदेव ने अपने जीवन में नाई की मंडी में बम बनाना भी सीखा। ये बात बेहद ही कम लोग जानते हैं। कलकत्ता ( Kolkata ) में भगत सिंह की मुलाकात यतीन्द्र नाथ से हुई। नाथ बम बनाने की कला जानते थे। यहां भगत सिंह ( Bhagat Singh ) ने गनकाटन बनाना सीखा। साथ ही अपने अन्य साथियों को ये कला सिखाने के लिए आगरा में दल को दो टीमों में बांटा गया। जहां उन्हें बम बनाना सिखाया गया। नाई की मंडी में बम बनाने की कला सिखने के लिए शहीद सुखदेव को बुलाया गया। सुखदेव यहां आए और बम बनाना सीखा। बाद में उन्होंने इन्हीं बमों का इस्तेमाल असेंबली बम धमाकों के लिए किया था।
बचपने से ही सुखदेव जिद्दी स्वभाव के थे। बात उनकी पढ़ाई-लिखाई की करें तो यहां भी उनका कोई खास मन नहीं था। अगर उनका मन करता था तो कभी पढ़ लेते थे नहीं तो वो नहीं पढ़ते थे। हालांकि, वो किसी भी चीज को लेकर काफी गहरा चिंतन करते थे। इसके लिए वो किसी एकांत जगह पर जाकर बैठ जाते और फिर उस चीज के बारे में ही सोचते रहते थे। यही नहीं वो कुशल रणनीतिकार भी थे। जब साइमन कमीशन भारत आया तो हर तरफ शहीद सुखदेव ने उनका तीव्र विरोध किया। वहीं जब पंजाब में लाला लाजपत राय का लाठीचार्ज के दौरान देहांत हो गया तो सुखदेव ने भगत सिंह के साथ मिलकर ही बदला लेने की ठानी थी।
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इस सारी योजना के सूत्रधार सुखदेव ही थे। कहा जाता है कि सेंट्रल आसेंबली के सभागार में बम, पर्चें फेंकने की नींव और रीढ़ शहीद सुखदेव ही थे। उनका मानना था कि चाहे जो भी काम करो उसका उद्देश्य सभी के सामने स्पष्ट रूप में होना चाहिए। आज भले ही वो हम सबके बीच नहीं हैं, लेकिन वो लोगों के दिलों में अब भी जिंदा हैं।